जिन्दगी आज तुझ से कुछ बात कर लूं,
तेरे साथ बिताये कुछ लम्हों को याद कर लूँ,
जब तू आई मैं रो रहा था
माँ प्रसव की वेदना को भूल मुझे देख
बहुत खुश हो रही थी,मुझे देख सेकड़ो
सपने संजों रही थी,
थोडा बड़ा हुआ बचपन आया
हर लम्हे से मैंने एक सपना सजाया,
जो अब न कर सका वो बड़ा होकर करूँगा
अपनी माँ के हर सपने को साकार करूँगा,
जवानी आते आते,ये कैसा दौर आ गया,
मेरे देखे सपनो को, सूखे पत्तों सा उड़ा गया,
सपने देखना तो गुनाह हो गया,
हर एक इंसान खुदा हो गया,
इंसानों में इंसानियत ख़त्म हो गई,
माँ ने जो सिखाई थी ईमान,धर्म की बातें
वो कहाँ खो गई,
जिन्दगी तुने मेरा हर पल साथ दिया,
मैं ही खुदगर्ज़ और लालची था
जो तुझे भुला दिया,
जिन्दगी तू बहुत खुबसूरत है,
तुने मुझे जीने की लिए सब कुछ दिया,
मैं इंसान ही तेरे काबिल नहीं,
मैं ही तेरे दुःख सुख में शामिल नहीं,
**********राघव पंडित***
तेरे साथ बिताये कुछ लम्हों को याद कर लूँ,
जब तू आई मैं रो रहा था
माँ प्रसव की वेदना को भूल मुझे देख
बहुत खुश हो रही थी,मुझे देख सेकड़ो
सपने संजों रही थी,
थोडा बड़ा हुआ बचपन आया
हर लम्हे से मैंने एक सपना सजाया,
जो अब न कर सका वो बड़ा होकर करूँगा
अपनी माँ के हर सपने को साकार करूँगा,
जवानी आते आते,ये कैसा दौर आ गया,
मेरे देखे सपनो को, सूखे पत्तों सा उड़ा गया,
सपने देखना तो गुनाह हो गया,
हर एक इंसान खुदा हो गया,
इंसानों में इंसानियत ख़त्म हो गई,
माँ ने जो सिखाई थी ईमान,धर्म की बातें
वो कहाँ खो गई,
जिन्दगी तुने मेरा हर पल साथ दिया,
मैं ही खुदगर्ज़ और लालची था
जो तुझे भुला दिया,
जिन्दगी तू बहुत खुबसूरत है,
तुने मुझे जीने की लिए सब कुछ दिया,
मैं इंसान ही तेरे काबिल नहीं,
मैं ही तेरे दुःख सुख में शामिल नहीं,
**********राघव पंडित***
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