आज फिर
बे वफ़ा ने बीते लम्हों का
वास्ता दे कर बुलाया है,
फिर मेरे प्यार में उसे कोई
सितम नज़र आया है,
या फिर
उसके सितम की इन्तहा अभी बाकी है,
वो क्या जाने
उसके किये सितम ही अब मेरे साथी है,
इतना सहने के बाद भी उसके बुलाने पे चला जाता हु,
जुबान साथ नहीं देती,
फिर भी मुहब्बत कह जाता हु,
******राघव विवेक पंडित
बे वफ़ा ने बीते लम्हों का
वास्ता दे कर बुलाया है,
फिर मेरे प्यार में उसे कोई
सितम नज़र आया है,
या फिर
उसके सितम की इन्तहा अभी बाकी है,
वो क्या जाने
उसके किये सितम ही अब मेरे साथी है,
इतना सहने के बाद भी उसके बुलाने पे चला जाता हु,
जुबान साथ नहीं देती,
फिर भी मुहब्बत कह जाता हु,
******राघव विवेक पंडित
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