बरसों बाद चांदनी रात आई है,
बरसों जिन्दगी सियाह रातों में बिताई है,
था कोई जो दे गया था अँधेरा हमको,
उसकी दी हर चीज़ हमने दिल से लगाईं है,
क्या बदनसीबी है,
चांदनी रात में ही हमको मौत आई है,
हमें कब जीते जी चांदनी रात रास आई है,
चांदनी रात भी पलभर की सौदाई है,
दफ़न के बाद, फिर अँधेरा, उसकी यादें और तन्हाई है,
*********राघव पंडित***
बरसों जिन्दगी सियाह रातों में बिताई है,
था कोई जो दे गया था अँधेरा हमको,
उसकी दी हर चीज़ हमने दिल से लगाईं है,
क्या बदनसीबी है,
चांदनी रात में ही हमको मौत आई है,
हमें कब जीते जी चांदनी रात रास आई है,
चांदनी रात भी पलभर की सौदाई है,
दफ़न के बाद, फिर अँधेरा, उसकी यादें और तन्हाई है,
*********राघव पंडित***
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