Monday 6 February 2012

सियाह रातें

सियाह रातों से दोस्ती हो गई है,
चांदनी रात जाने कहाँ खो गई है,

आमवस्या की रात में मैं चाँद धुन्दता हु
मुहब्बत में टूटे अरमान धुन्दता हु

मुहब्बत में किसीने मुझसे छिनी चांदनी,
में उस चांदनी के निशान धुन्दता हु,

सियाह रातें मुझे सुकून दे रही है,
चांदनी से मुझे तपिश हो रही है,

अँधेरा मुझे प्यार कर रहा है,
मेरा साया भी मेरे साथ चल रहा है,

हम बैठे बैठे, ये कया सोचते है,
तेरे दिए जखम, आज भी तेरा पता पूछते है,

तुने मेरे साथ ऐसा क्यों किया
ये सवाल है,
तू नहीं मेरे साथ, ये नहीं खास बात है,
हाँ, तेरे दिया अँधेरा आज तक मेरे साथ है,





***********राघव विवेक पंडित 

No comments:

Post a Comment