अजनि ब्यों से दोस्ती की है
अपनों का गम भुलाने के लिए ,
देखते क्या मिलता है
देखते क्या मिलता है
अब उन से दिल लगाने के लिए,
अगर दर्द मिला ,
तो उसकी हमको आदत है,
अगर जखम मिला
अगर जखम मिला
तो उसको भी हम अपना लेंगे
यही है किश्मत ,
यही है किश्मत ,
ये कह के मन को सम्झा लेंगे ,
हमें तो आदत है,
मन को समझाने की,
बीत जायेगा ये वक़्त भी,
बीत जायेगा ये वक़्त भी,
ये कह कर भूल जाने की,
अगर ख़ुशी मिली तो समझ जायेंगे ,
कि आदत डाल ले दीवाने
अब मुश्कुराने की,
लगता है कि नज़र बदल गई ज़माने की,
रहम आ गया
लगता है कि नज़र बदल गई ज़माने की,
रहम आ गया
तुझ पे उपर वाले को,
कभी हमारा दिन भी आएगा ,
कभी हमारा दिन भी आएगा ,
ये सोच कर जीवन कट जायेगा,
इस उम्मीद के साथ
इस उम्मीद के साथ
दीवाना खाक में मिल जायेगा,
***********राघव विवेक पंडित
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