Monday 27 February 2012

जमाने के खुदा


रोशन करने के लिए खुद को
जाने कितनो को जला डाला,
किसी की मुहब्बत लुटी 
तो किसी को मिटा डाला,

गरीबों की भावनाओं का 
तुम मजाक बनाते हो 
वक़्त पड़ने पर 
किसी को माँ
किसी को बहन 
किसी को बाप बनाते हो,

खाते हो तुम सैलाब का
खाते हो तुम दंगों का
खाते हो तुम भूखों का,
शांत होती है तुम्हारी भूख 
गरीबों के आंसुओं 
और उनका हक़ खाकर,  

खुदा हो तुम दोजख के
न किसी से डरते हो,
मजलूमों पे सितम कर तुम
खुद को बुलंद करते हो,

तुम लाशों के सौदागर हो 
तुम दुश्मन हो इंसानियत के,
तुम खा गए खनिज की खाद्दाने 
तुम चबा गए बाग़ और बगीचे 
तुम लील गए सेकड़ों ज़ाने 
तुम खा गए अनाथों का भोजन,
तुम्हारे हाथ जो लग जाये 
उसका विनाश है निश्चित,

दिन तो एक मुकरर है तुम्हारी भी
बर्बादी का,
वही दिन होगा
अब गरीबों और मजलूमों की आज़ादी का,



                        *******राघव विवेक पंडित 









Thursday 23 February 2012

खामोश निगाहें


राहों में देखी है 
कुछ खामोश निगाहें
जो देती है जवाब 
मेरे कुछ अनसुलझे सवालों के,

समझा लेता हूँ मन को
एक तू ही नहीं 
इस धरती पर 
जो एक ऐसा शोला
दिल में लिए जीता है
जो न तो जलाता है 
न जीने देता,
सिर्फ तड़पाता है 

कुछ मुरझाये हुए 
नाउम्मीद चेहरे
थक चुके है जो
जीवन के अथाह संघर्ष से,
जो कुछ भी न बदल सका,

पढ़ रहा हूँ मैं उन आँखों में 
वो सब 
जो मेरी भी तड़प और छटपटाहट 
का है कारण,
मुझे उनमे अपना 
अक्ष नज़र आता है,

मेरी ही तरह
वो भी तलाश रहे है,
इस तेजाबी भीड़ से दूर 
एक सकून भरा कोना,

देख सकता हूँ मैं
उनकी आँखों में
वो गुस्सा और वो दर्द,
जो साक्षी है उस अन्याय का  
जो पल पल 
इस समाज में
उनके साथ हुए,

मेरी ही तरह
कुछ डरी और सहमी आँखें 
इन असुरों के राज में
असुरक्षित समाज में 
उनमे पैदा हुआ ये डर
न जाने किस पल 
बन जायेगे वो 
काल का ग्रास, 

वापस घर पहुचेंगे या 
नहीं,
घर से निकलते हुए
आँखों झलकता  
एक सवाल,  

पथरा सी गई है आँखें 
सह सह के दर्द और तड़प 
की हर मार,
आँखों ने नम होना
छोड़ दिया है 
थक चुकी है
आंसू बहा बहा के,


*******राघव विवेक पंडित 






Monday 20 February 2012

खुदा से सवाल

खुदा से सवाल करते हो
उसके बताये कितने काम करते हो
जब उसके बताये सारे काम कर लो
उसकी राह पर चलने लगो
तब उससे सवाल करना,

उसने तो तुम्हे इंसान के रूप में भेजा था
और तुम इंसान भी न रह सके,

जमीं पे रहने का सलीका नहीं,
और लगा दिया आसमान वाले पर इल्जाम,





                       राघव विवेक पंडित 


सितम

सितम उनके हम पे यूँ होते रहे
प्यार के बोझ को,
हम उनके यूँ ढोते रहे ,

चाहकर भी उनसे
हम कह न सके,
घुटन होती रही
अश्क बह न सके,

आँखों में अश्कों का
दरिया लिए,
कोई कब तक जिए,
ख्वाबों में आई दरारों को
कोई कब तक सिये,

जो उजालों के खुदा
लगते थे,
वो सियाह अंधेरों के
मेहरबान हो गए,
जिन्दगी यूँ ही करवटें
बदलती रही,
सेकड़ों फासलें
दरमियाँ हो गए,

*******राघव विवेक पंडित

Friday 17 February 2012

कुछ पल ख़ुशी के


आओ थोडा
हँसे और हंसायें, 
जीवन की इस भाग दौड़ से 
कुछ पल
ख़ुशी के चुराएं,

गुमराह करें
कुछ गम को,
कुछ खुद गुमराह हो जाएँ ,

रूठ गया था जो कल हमसे
चलो फिर आज मनाएं,
दूर करें
सब गिले शिकवे 
खुशियों के फूल खिलाएं,

राहें गम में
बिछड़ गया जो 
उसे साथ ले आयें,
जीवन है एक
सुख दुःख की धारा,
हंसी ख़ुशी पार कर जाएँ,

उम्मीदों का बाँध न टूटे 
हिम्मत कभी न हारें, 
हंसी ख़ुशी
सब कट जायेंगे,
गम जीवन के सारे,

आंसू पोंछे हम सबके 
करें दूर अँधेरा,
जीवन एक सुख दुःख का घेरा
होता सदा सवेरा,

मंजिल उसे सदा मिली 
जिसने धेर्य न खोया,
सबने वही पाया है
जिसने जो है बोया,


पाप पुण्य सब सीख गए 
हम न सीखे व्यवहार,
प्रेम की भाषा
जानवर भी जाने,
तो हम क्यों है
अज्ञान  


दे कर दर्द 
नहीं मिला किसी को 
सुखसागर संसार,
जीवन है एक अमृत धारा
करो सभी को पार,




   ******* राघव विवेक पंडित 






समाज के कलंक


मैं जीता हूँ बेजमीरों में 
लालच में अंधे 
वो जो जीते है
सिर्फ अपने लिए,

रहते है शीशे के घरों में 
हो चुके पत्थर
मर चुकी है आत्मा
खाते है बेईमानी का
पीते है निर्दोषों का खून,

ये इंसान रूपी 
पिशाचों की वो जमात है
जो न भगवान और
न इंसान के साथ है,

पैसे के लिए 
ये कुछ भी बेच दें
ये माँ बाप बहन बीवी और 
देश बेच दें,

न कोई इनकी बहन
न भाई है, 
ये लाशों के सौदाई है
इन्होने आँखें, दिल और
किडनी बेच खाई है,

ये है मांस के सिर्फ चीथड़े 
इनका कोई नाम नहीं 
नहीं कह सकते
इन्हें जानवर भी,
क्योकि अच्छे होते है 
इनसे जानवर भी,
इनसे डरते है
जानवर भी, 

ये है मानव समाज
के कलंक
समय समय पर हमारी 
अंतरात्मा को झंझोड़ना 
काम है इनका,
इनके द्वारा किये कृत्य
हमें धिक्कारते है
हम कुछ नहीं कर सकते इनका
हम कितने मजबूर है या
हमें आदत हो गई है 
सहन की,
 
हम इस गंदगी को 
ढोयेंगे कब तक, 
ये नासूर है समाज में
जो लाइलाज है अब,
इसको काट फेकना ही 
इसका अंत है 


           *******राघव विवेक पंडित 




Wednesday 15 February 2012

महसूस होती है तेरी कमी


न जाने क्यों
तेरी कमी खलती है,
जिन्दगी के अंधेरों में   
यादों की 
शमां जलती है,

महसूस करता हूँ
तेरी साँसों की तपिश
अपनी साँसों में आज भी,

शाम की नर्म हवा के 
परों पर आती है तेरी महक,
साथ लाती है तेरी पायल की 
छम- छम  छम-छम,


याद आता है
सियाह रात में  
दीये की रौशनी में 
तेरा चाँद सा
चेहरा देखना ,

याद आता है तेरा 
द्वार पर खड़े हो कर 
गुनगुनाना 
और हमें देख शर्माते हुए 
पल्लू मुह में दबा
घर के अंदर भागना,

शाम ढलते ही 
आते है यादों के समंदर
और उनके साथ 
आँखों नमी, 



          ********राघव विवेक पंडित**



Tuesday 14 February 2012

काश न होते हमदर्द


काश सभी दुखी इन्सान 
रात के सन्नाटे में कमरे में रोते, 
आंसू पोछने को
हमदर्द हाथ तो न होते,
वहां होते सिर्फ
कमरे के चार सूनसान कोने
जो रहते तो है साथ 
लेकिन दुःख में
एक दुसरे के आंसू
भी नहीं पोंछ पाते,

होती वहां एक चारपाई 
जिसको घर के सभी लोगों ने 
रो रो के सुनाया होता 
अपना दुःख, 
लेकिन उसकी पीड़ा 
किसी न सुनी होती,

वहां होता एक पंखा
जिसने अपनी आवाज़ में,
घर के कितने ही लोगों 
के रोने की आवाज़ दबा दी,
लेकिन उसकी आवाज़ 
कोई न सुन सका,

वहां होता एक खाली गिलास 
जिसका पानी पिने के बाद
रोते लोगों की प्यास 
हुई शांत,
लेकिन वो आज भी 
खाली का खाली,








 *********राघव विवेक पंडित 

आँखों में आंसू


हम जिन्दगी को
आंसुओं का समंदर कहते है
क्योकि आंसू उम्रभर बहते है,

बचपन से
आंसुओं का सैलाब आँखों में होता है,
बचपन कभी माँ और
कभी बाप के लिए रोता है,

आँखे जाने कितने
सपने आँखों में संजोती है,
साकार न होने पर 
यही फूट फूट के रोती है,

मुहब्बत हर पल 
महबूब के लिए आँखें बिछाए रहती है,
मुहब्बत इनकार हो या इकरार 
दोनों आँखों से कहती है,
जुदा होने पर महबूब से
यही आँखें दरिया सी बहती है,

जब दिन के बुरे ख्याल रात को
ख्वाबों में डराते है,
तब ये आंसू खुद बा खुद
आँखों में आ जाते है,

माँ बाप की यादें हो या
बेटी की विदाई की बातें हो,
आँखे आंसुओं से भर जाती है,

हर दर्द में आँखें आंसू बहाती है 
मरने के बाद भी
आंसुओं के इंतज़ार में, 
ये खुली रह जाती है,  

ख़ुशी हो या गम आँखों से बयाँ होता है,
दोनों ही सूरत में आँखों में आंसू होता है,


                      *********राघव विवेक पंडित**




Monday 13 February 2012

एक मौत का दिन


काश हर वर्ष में  
एक मौत का दिन होता,
इंसान तड़प तड़प के 
क्यों मौत के लिए रोता,

आँखे भी सालों साल न होती नम, 
न मौत के इंतज़ार में रोता गम ,

न जाने कितने जिन्दगी के मारों को 
मिलता सहारा,
जो रहे सदा तूफ़ान में, न मिला किनारा,

शायद
मर के ही इन ग़मों से जान छुट जाती,
पर साल का एक दिन भी नहीं, 
हम गम जदों का साथी,


                *********राघव विवेक पंडित**

क्या खूब हो

तुम्हारी जुल्फें
जैसे सेकड़ों घटाओं का समुंदर,

तुम्हारा मासूम सा चेहरा
जैसे सेकड़ों घटाओं से घिरा चाँद,

तुम्हारी आँखें
सेकड़ों अनकहे सवालों का दरिया,

तुम्हारे होठ
गुलाब की पंखुड़ियों से नाजुक

गजब की लगती हो, ये दीवाने कहते है
तेरे आगोश में चाँद सितारे रहते है,

राघव विवेक पंडित

Friday 10 February 2012

सच की पुकार


मैं सच 
चिल्लाता हूँ 
सुने कोई 

मैं सच
घायल तड़पता हूँ 
मरहम लगा दे कोई, 

मैं ईमान
कोडियों के भाव बिकता हूँ 
ले ले कोई

मैं ईमान
भूखा तडपता हूँ 
कुछ खिला दे कोई

कोई घर से बहार तो निकलो 
देखो तो एक बार,
क्या आज 
मेरा कोई साथी नहीं,
बचपन में तुमने मुझे 
अपनी किताबों में पढ़ा है,

तुम मेरी 
दिन में कई बार कसम लेते हो,
लेकिन जब मैं आता हूँ 
तो तुम मुझे  
झूठ और बेईमानी के 
पाँव तले
रोंद देते हो,

तुम मुझसे लाख बचों 
झूठ और बेईमान के
साथ सौ षड्यंत्र रचों ,
तुम मुझे न भुला पाओगे,
जब भी देखोगे आइना
खुद से भी नज़र बचाओगे 


          ******राघव विवेक पंडित****

Thursday 9 February 2012

कोफ़्त

 
एक समय
तुम मेरी खूबसूरती की
तारीफ़ करते नहीं थकते थे,
मैं तुम्हे नहीं मिलती थी
तुम बेचैन हो जाते थे,
आज मुझे देखकर 
तुम्हे कोफ़्त होती है 

एक समय
तुम्हे मेरी बातें बहुत अच्छी लगती थी
मेरी आवाज
तुम्हे बहुत सुरीली लगती थी 
आज मेरी बातों से तुम्हे 
कोफ़्त होती है,

तुम आज अधेड़ उम्र के होकर
अपने आपको नवयुवक समझते हो 
मुझमे तुम एक
नवयौवना का रूप चाहते हो 
तुम मुझसे नहीं 
मेरी आत्मा पर चढ़े
उस मांस के चीथड़े को प्यार करते थे,
जो समय के साथ बदलता है 

मैंने प्यार किया है तुमसे 
तुम्हारे रूप से नहीं 
मैंने प्यार किया,  
तुम्हे आत्मा से,
तुमने प्यार किया, 
वासना से 

मैं आज इस लायक नहीं,
कि तुम्हारी वासना की पूर्ति कर सकूँ,
तुम्हे मुझसे कोफ़्त हो गई
आज मैं चाहकर भी बिस्तर पर
एक नवयौवना सी नहीं दिख सकती 
तो मुझसे तुम्हे कोफ़्त हो गई

मैंने अपना यौवन तुम्हारे सुख और 
जिन्दगी 
हमारे घर और बच्चों के पालन पोषण 
में गुजारी, 

आज उम्र के इस पड़ाव पर 
जहाँ मुझे तुम्हारे प्यार और स्नेह 
की जरुरत है 
तुम्हे मुझसे कोफ़्त हो गई

मैंने पूरा जीवन 
मैंने अपने पति को हर संभव सुख दिया 
मैंने अपने बच्चों प्यार किया 
मैंने अपनी कोई मर्यादा भंग नहीं की 
मैंने अपनी सभी इच्छाओं का गलघोट कर
सिर्फ तुम्हारी इच्छाओं की पूर्ति की,

और इसके बदले मुझे 
क्या मिला,
तुम्हारी कोफ़्त 
 
क्या मैं गलत थी 
सदियों से
इस पुरष प्रधान समाज के पास  
इस सवाल का कोई जवाब नहीं,
क्योकि 
इस सवाल का जवाब देते समय 
इनका अहंकार आड़े आता है,


       *******राघव विवेक पंडित**

मैं गरीब मजदूर


मेरे सिर पर कपडा 
माथे पर पसीना 
पेट कभी आधा भरा
कभी खाली 
तन पर एक फटी लंगोटी 
पाँव में एक टूटी चप्पल
हाथों पर कुछ चोट के निशान
और कुछ जख्मों से बहता लहू 

मेरी पत्नी भी
मेरे कंधे से कन्धा मिलाकर
दो वक़्त की रोटी के लिए
संघर्षरत 

अपना घर 
एक ऐसा सपना
जिसे शायद मेरी कई पीड़ियाँ भी
साकार न कर सके

मेरा घर 
उस इमारत या घर की टूटी हुई 
चारदीवारी 
जिसे बनाने के लिए
मुझे मजदूरी पर रख्खा गया
 
मेरा बिस्तर
सीमेंट के खाली बोरे 
और ओढने को एक फटी लंगोटी या
किसी ने रहम कर के दी 
कोई पुरानी चादर 

चुनाव के समय 
मेरे गाँव का प्रधान 
गाँव आने का आमन्त्रण और
रेल का टिकट दोनों भेजता है,
और वोट डालने के बाद 
कहता है 
बाय बाय 
क्या यही मेरे जीवन का मूल्य है,
'एक वोटर'

सरकार भी बड़े बड़े वायदे करती है , 
बजट में भी हमारे जैसे लोगों के
कल्याण के नाम पर कुछ रखती है,

मेरे मरने और जीने से 
क्या फर्क पड़ता है,
पर बजट में मेरे कल्याण के
नाम पर निकाले पैसे से
नेताजी का खानदान ऐश करता है,

जिन मकानों को हम 
खून पसीना बहा के बनाते है, 
उसमे रहने वाले लोगों के द्वारा 
समाज की गंदगी कहे जाते है,

क्या मेरी यही पहचान है 
वोटर
समाज की गंदगी 
ओए इधर आ
इत्यादि 

मैं सोचता हूँ  
न जाने कब
मुझे इंसान समझा जायेगा,
क्या मेरे बच्चों को भी  
कोई इन्ही नामों से बुलाएगा,
ये सोचकर
मन बहुत दुखी होता है, 

अब तो
ये प्रतीत होता है 
मेरा गरीब होना है शायद पाप,
मेरा जीवन 
मेरे लिए और
इस समाज के लिए है शाप,


           *******राघव विवेक पंडित*** 

Tuesday 7 February 2012

आशिक कि कलम से


मैं उसे कैसे माफ़ करूँ और कैसे भूल जाऊ ,
 उसे भूल के मैं किस से दिल लगाऊं,

वो मेरे खाव्बों मैं रोज़ आती है,
मेरी नींद ही उसे भूलने से रोक जाती है ,

उसका दिया दर्द मुझे उसकी याद दिलाता है,
वो कभी अपना था मुझे ये समझाता हैं,
मैं उसे न माफ़ करूँगा न भूल पाउँगा,
उसकी दी हर सौगात के
साथ जीऊंगा और मर जाऊंगा,

 **************राघव विवेक पंडित




 हम पर ज़माने ने सौ जुल्म किये ,
 हमने मय से की मुहब्बत, और सब भुला दिए ,

 हम खाली प्यालों से बात किया  करते हैं,
 वही हमारे दर्द मैं अब साथ दिया  करते हैं,
 असर न देख ज़माने के जुल्मों का,
दुनिया कहती ये दीवाना हैं,
कैसे समझाए मेरे यारों इन्हें ,
हमारी आदत ही हर बुरी सह को भूल जाना है,

 .......................राघव विवेक पंडित 



मय, साकी, मयखाना नाम है गम भुलाने की दवा का,
प्यार, मुहब्बत, वफ़ा, नाम है एक सजा का,
मय वफादार है जो गम भुलाती है,
मुहब्बत बे वफ़ा है, जो गम दे जाती है,
 साकी बड़े प्यार से पिलाता है,
और यार प्यार में दर्द दे जाता हैं,
 राघव तू भी लगा ले दिल मयखाने से,
और भुला दे गम ज़माने के ,
 ऐ खुदा मय पिने के बाद,
सब सच बोला जाता है,
मैंने सुना है जहाँ सच होता,
वहां तो तू भी आता है,

 ********राघव विवेक पंडित 


ख़ामोशी से ये दिल , आँखों से कह रहा है,
तू उसे याद करके मत रो, मुझसे लहू बह रहा है,
ऐ िदल तू समझ ले , वो बेवफा नहीं आएगी,
उसकी याद तुझे, खवाबों मैं भी तडपायेगी,
ये तेरा इंतज़ार करना बेकार है,
 अब उसकी यादें , उसके दिए जखम, उसका दिया दर्द ,
यही तेरा प्यार है,

 लगा मत िदल ज़माने से , यहाँ बस दर्द मिलता  हैं,
 किसी पे जान जाती है, किसी से जखम िमलता हैं,
 कोई अब दिलासा देगा , वो ही कल मार डालेगा,
 तू जिन्दा रहा तो , यही सब दर्द पलेगा,

 .................राघव विवेक पंडित 






बेवफा तेरा हर एक अंदाज़ याद आता है,
 और दिल रह रह के अश्क बहाता है,

 बेवफा तुने जो जखम दिए है मुझको,
 उनसे लहू रह रह के निकल जाता है,

तुने मेरे प्यार को अजाब बना डाला,
मेरी मुहब्बत को मजाक बना डाला,

सदा खुश रहे तू, हम तो दुआ करते हैं,
तेरी बेवफाई को रह रह कर याद करते है,

 ................... राघव विवेक पंडित 


उस की एक झलक पाने के बाद ,आया ये ख्याल है,
तू ही गुलाब है तू ही बहार है,
तू ही सावन है, तू ही सावन की नन्ही-नन्ही फुहार है,
तू ही प्यार है, तू ही ईकरार है,
तू ही मुहब्बत है, तू ही वफ़ा है,
 तू ही क़यामत है, तू ही निगाह है,
तू ही दर्द है, तू ही मरहम है,
तू ही मेरे प्यार की मीठी मीठी सरगम है,
तू ही आंधी है, तू ही घटा है,
 तुझे पाना मुहब्बत मैं आशिक का इम्तिहान है,
तू ही मेरा जख्म है तू ही मेरी दवा है,
तू ही मेरा खवाब है, तू ही मेरे खवाबों की ताबीर है,
तू ही मेरी सांस है, तू ही मेरा अह्सांस है,
तू मेरे लहू मैं इस तरह समाई है,
कि  मैं देखता हु आइना, उस मैं भी तू ही नज़र आई है,
करम कर इस तलबगार पे,
 ले ले जान, और दे दे एक झलक  प्यार की,
 अब तेरे बिन न रहा जायेगा,
क्या मेरा प्यार एक खवाब बन के रह जायेगा,
ऐ खुदा मेरे महबूब को गुनाहगार मत समझना
 क्योकि मेरे ख्वाब पे मेरा हक है,
उनके प्यार पे नही

 ************राघव  विवेक  पंडित




तुम कहाँ हो, यहाँ हो..वहां हो
जहाँ देखता हु मुझे तुम ही तुम
नज़र आती हो

तुम मुझ मैं इस तरह समां चुकी हो
मैं अपने आप मैं तम्हारी खुशबु ,

मेरे आसपास तुम्हारे होने का अहसास ,
मेरी परछाई भी अब तुम्हरी परछाई लगती है
इन हवाओं मैं तुम्हारी जुल्फों की महक आती है
इन झरनों से गिरते पानी की आवाज़ से,
मुझे ऐसा लगता है जैसे तुम कुछ गुन-गुना रही हो
इन पेड़ों की घनी छाँव,
मुझे तुम्हारे दुप्पटे की छाँव का अहसास कराती है
मैं इस माटी मैं जज्ब हो कर भी तुम्हे भूल न सका,
मुझे इस कब्रिस्तान मैं,
अपने महबूब की यादों के सहारे रहने दो,
ऐ खुदा मुझे तुझसे कुछ नहीं चाहिए,
बस इतना अहसान कर दे
मेरे महबूब की माटी को
एक हवा के झोके से
मेरे महबूब की कब्र की माटी को
मेरी कब्र की माटी मैं जज्ब कर दे
और मेरी रूह को सकूँ दे दे
मैं अपने महबूब की यादों के सहारे
सौ जनम तक, क़यामत तक,
काटों मैं भी फूलों का अहसास कर सकता हु

         *********राघव विवेक पंडित 

























खुदा लगता है,


हुश्न वालों का खुदा लगता है,
यार तू सबसे जुदा लगता है.

ऐसा कया है तेरी अंगड़ाई में,
हमें तू रोज़ जुदा लगता है,

तेरी जुल्फें जब लहराती है,
घटाएँ भी शर्मा के छुप जाती है,

 तेरी निगाहों के तीरों वो ने काम िक्या,
 हम खामोश रहे और दिल थाम िलया,

 तू जो बहार निकले तो धुप निकलती है
तू जो घर पहुचे तो शाम ढलती है,

 तुझे देख बागों में गुल खिलते है,
तेरे क़दमों को चूमने को मचलते है,

तू मुहब्बत का खुदा लगता है,
यार तू सबसे जुदा लगता है,


 ******राघव विवेक पंडित 



दिल कहता है,

दिल कहता है,
आ मुहब्बत तुझे जखम दिखा दू,
तेरे किये सितम के तुझे नक्स दिखा दू,

तुने जो दिया मुहब्बत में मुझको ,
आ तुझको उसकी तस्वीर दिखा दू,

तुने चाहा था बर्बादी मेरी,
आ उस बर्बादी के खंडहर दिखा दू,

मांगी थी मुहब्बत मैंने जिस बेरहम से,
आज सहमा सहमा सा हु में उसके सितमों कर्म से,

आ उस बेरहम का तुझे जलवा दिखा दू,
कैसे किया मुझे तार तार ये में बता दू,

मेरी हर एक रग से लहू बह रहा है,
तू बेदर्द, तू बेवफा ये कह रहा है,

आँखों से अश्क बार बार बह रहे है,
क्या यही है मुहब्बत, दुहाई दे रहे है,

आ मुहब्बत तुझ पे हजारों इलज़ाम लगा दू,
तू है बदनाम ये एलान करा दू,

मैंने सुना था मुहब्बत में सुकून मिलता है,
बहारों के बगैर भी फूल खिलता है,

शायद, राघव ये तेरी किस्मत है,
मुहब्बत ये तेरा दस्तूर नहीं,
मेरी बर्बादी में तेरा कोई कसूर नहीं,





******राघव विवेक पंडित 


आज दिल बड़ा उदास है,

आज दिल बड़ा उदास है,
उनके मुस्कुराते चेहरे और
सकुन भरे शब्दों की प्यास है,

वो न जाने कहाँ है,
उनकी यादें, उनकी बातें,
उनका गुल सा खिला चेहरा,
मेरे दिल और मेरी आँखों के दरमियाँ है,

उनके दीदार की ख्वाइश है,
दिल की तड़प और
आँखों की फरमाइश है,

ये कायनात, ये आसमा, ये समंदर की लहरें,
तुझ सा नहीं कोई,
तेरे बिन ये निगाह कहाँ ठहरे,

माना इश्क को तडपाना हुशन की आदत है,
इश्क में मर जाना ये आशिक की चाहत है,

तुझे चाहना मेरी मुहब्बत की तकदीर है,
तेरा दीदार करते हुए मर जाना
मेरे ख्वाबों की ताबीर है,

तेरा दीदार दोजख है
तो भी में तुझे चाहता हु,
तेरा दीदार अगर सैलाब है,
तो में उस में बह जाना चाहता हु,
अगर तू मौत है तो साथ ले जा मुझको,
क्योकि,
में भी तो तुझ पे मरना चाहता हु,

तुम छुप जाओ सात पर्दों में, तुम्हे ख्वाबों में देख लेंगे,
अगर ख्वाबों में न मिले तो सुनकर मेरी दुहाई,
ये गुल ये गुलिस्तां, ये जमीन ये आसमा, ये चाँद ये तारे ,
ये दिलकश नज़ारे, ये पक्षियों की चहचाहट,
ये घास पे रुकी शबनम की बूंदें, ये फूलों की खुशबू,
ये भंवरों की रूनझून,
सब ये तेरा पता देंगे,

ऐ खुदा करा दे दीदार उनका,
जो तेरे बाद इस जहाँ के मालिक है





******राघव विवेक पंडित 



यादें

न जाने क्यों, आज उनकी याद आ रही है,
उनको देखने की तड़प बदती जा रही है,

भूले हुए खवाब फिर आँखों में आ रहे है,
टूटे हुए सपने फिर दिल दुखा रहे है,

उनके हर एक स्पर्श का अहसास हो रहा है,
मन में उनकी खुशबू का समंदर बह रहा है,

उनकी घनी जुल्फें फिर याद आ रही है,
धुप में भी अनगिनित घटायें छा रही है,

उनके आँचल की छाव फिर याद रही है,
उस सुखद ठंडक का अहसास करा रही है,

उनके शाने पे सर रख के सोना याद आ रहा है,
उनके साथ देखे सपनों की याद दिला रहा है,

उनका दिया दर्द, आज फिर याद आ रहा है
नाकाम मुहबत की याद दिला रहा है,

मेरी मुहब्बत को न मिल सका
लैला मजनू,शिरी फरहाद, रोमिओ जूलियट का मुकाम,
मेरी मुहब्बत रही शिकस्ता दिल नाकाम,

लेकिन आज भी में उन्हें बे इन्तहा प्यार करता हु,
उनके साथ बिताये हर लम्हे को याद करता हु,





******राघव विवेक पंडित 


BE NAAM

उन्होंने शिरकत की है बन के कहर,
खुदा बचाए अब हम आशिकों शहर,

वो मुहब्बत में क़त्ल करने वालों के खुदा है,
ये मुहब्बत में मरने वालों का बयां है,

हमने भी जब मौत से कर ली है दोस्ती,
अब न हो पायेगी चाह कर भी बे रुखी,

उनकी अदायें क़त्ल का सामान है,
अब हमारी जिन्दगी भी दो पल की मेहमान है,

एक निगाह में उनकी सेकड़ों अंगारे है,
या खुदा बताये अब हम किसके सहारे है,





******राघव विवेक पंडित 

तसलीमा नसरीन

वो कौन है
जिसके लिए कुछ बोले
तो कुछ मौन है,

वो बोले तो बवाल मच जाता है,
क्योकि कोई सही बात
हजम नहीं कर पता है,

वो मजलूमों के लिए जीती है
वो सीधी बात कहती है,
उसे मौत का नहीं डर
क्योकि उसमे है एक
निश्छल, निष्पक्ष, साहसी,
मानवता के लिए कुछ करने वाली
आत्मा का घर,

जाने कितने जुल्मों को सहती है,
मौलवियों के फतवों में रहती है
पर उसे नहीं किसी का डर
क्योकि उसके साथ है इश्वर,

इंसानियत उसका धर्म
समाज की भलाई उसका कर्म

वो अकेली
लेकिन डर विहीन है,
और कोई नहीं
वो अपनी तसलीमा नसरीन है,







 ******राघव विवेक पंडित 

मेरी प्रेरणा

तुम मेरी प्राणप्यारी, संगिनी,
दामिनी, प्रेयसी और मेरे
हरदय की धड़कन हो,
तुम्हारे बिना में इस जीवन की
कल्पना भी नहीं कर सकता,

तुम सदा मेरे साथ रहती हो
कर्म क्षेत्र में
मेरी प्रेरणा बनकर,
युद्ध क्षेत्र
में मेरी शक्ति बनकर,
तुम मेरे जीवन का वो
संगीत हो
जिसके बिना मेरे जीवन का
हर सुर अधुरा है,
तुम मेरे जीवन के हर संघर्ष
मेरी परछाई की तरह मेरे
साथ हो,

तुम मुझ में ऐसे समायी हो
जैसे मेरे शरीर की धमनियों में
बहने वाला रक्त,
जिव्हा से लार, चक्षु से रौशनी,
हरदय से धड़कन,
तुम्हारे बिना में इस जीवन की
कल्पना भी नहीं कर सकता,







 ******राघव विवेक पंडित 

कब आएगी

मैं गमे गिन्दगी से बेजार
पल पल तड़पता हु,
मेरा अपने जख्मों को देखना
फिर तुझे याद करना

मेरी हर कराहट पर तुम मुझे
याद आती हो,
मेरी हर चीख तुम्हे याद
करती है,

मेरे जख्मों से बहते
लहू की हर बूँद मुझे
तुम्हारी याद दिलाती है,

मुझे देख अब तो राहगीर भी
मेरे लिए दुआ करते है,

ऐ मौत
आ मुझे सकूँ दे दे
मैं तेरे आगोश में सदा सदा
के लिए
सोना चाहता हु,







 ******राघव विवेक पंडित

मजबूर

बेबस हु मैं इस कदर
कि मैं रो नहीं सकता,
लगता है डर खवाबों से
कि मैंने सो नहीं सकता,

जमीनों से निकलता है
है जवालामुखी
कि मैं कुछ बो नहीं सकता,

फिजाओं में है इतना ज़हर,
कि सांस ली नहीं जाती,
छीन लिया मुझसे
मेरा घर और शहर
कि मैं अब कुछ भी
खो नहीं सकता,





******राघव विवेक पंडित 

मेरी प्रेयसी

मेरी देहलीज़ तेरी
महक पहचानती है,
मेरे दरवाज़े कि चौखट
तेरा स्पर्श पहचानती है,

मेरे आँगन की तुलसी भी
तेरी आहट पहचानती है,

मेरे आँगन कि मिटटी भी
तेरी खुशबू जानती है,

तुम जब मेरे आँगन में
इठलाती चलती हो तो
तुम्हारी पाजेब की झनक झनक
के संगीत से मेरे
घर का हर कोना
झूम उठता है,

मेरा शयन कक्ष तुम्हारे
जिस्म की
महक पहचानता है,
तुम्हारे हर स्पर्श को वो जनता है,

तुम हो मेरी गृहसवामिनी, मेरी दामिनी,
मेरी संगिनी, मेरी प्राणप्यारी,
लक्ष्मी रुपेण,
मेरी गृहलक्ष्मी
मेरी धर्मपत्नी





******राघव विवेक पंडित 

लाशों का शहर

ये मेरे शहर जैसे घर में क्या हो रहा है,
हर इंसान अपना सकूँ खो रहा है,

लालच की उसके इन्तहा हो गई
भागते भागते
जिन्दगी कहाँ खो गई,

हर इंसान एक लाश नज़र
आता है हँसता खेलता शहर,
अब दफिनो नज़र आता है,





******राघव विवेक पंडित 

शून्य

मैं भी कभी हरा हरा था
फूल पत्तों से भरा था
मेरे अपनों ने पहले
नाता तोडा,
जर्द पत्तों और साखों ने
दामन छोड़ा,
आज में निर्बल और
मजबूर हु,

एक दिन जर्जर होकर
इस मिटटी में मिल जाऊंगा,
शून्य से आया था शून्य हो जाऊंगा,

तेरी जवानी भी एक पल का
शोर है, फिर अँधेरा घोर है,

जैसे जैसे तेरा योवन जायेगा
हर तेरा अपना तुझ से
दामन बचाएगा,

फिर तू एक दिन सबसे
नाता तोड़ जायेगा,
तेरा अस्तित्व शून्य से आया था
शून्य हो जायेगा,

परमात्मा की
यही नियति यही दस्तूर है,
इस मंजर को देखने को
हर कोई मजबूर है,





******राघव विवेक पंडित 

वफ़ा

आज फिर
बे वफ़ा ने बीते लम्हों का
वास्ता दे कर बुलाया है,
फिर मेरे प्यार में उसे कोई
सितम नज़र आया है,

या फिर
उसके सितम की इन्तहा अभी बाकी है,
वो क्या जाने
उसके किये सितम ही अब मेरे साथी है,

इतना सहने के बाद भी उसके बुलाने पे चला जाता हु,
जुबान साथ नहीं देती,
फिर भी मुहब्बत कह जाता हु,





******राघव विवेक पंडित 

मेरे ख्वाबों का शहर


कहाँ है मेरे खवाबों का शहर,
 मिला दिया  है किसी ने हवाओं में जहर,
इंसान इंसान पर बरपा रहा है कहर,

 दिल  को दिल से जो कर रहा है जुदा,
कहाँ से आया है ये अजाब ऐ मेरे खुदा,

इंसान को इंसान से लग रहा है डर,
सुना सुना सा लगता हैं
ये मेरा शहर जैसा घर,

लग गया है शक और लालच का घुन
इंसान के ज़हन को,
मांग रहा है महसूल
वो प्यार, मुहब्बत और ईमान का,

 बच्चों ने डर से घर से निकलना छोड़ दिया ,
 पड़ोसियों से प्यार मुहब्बत का नाता ही तोड़ दिया ,

रात हो गई बच्चे घर नही पहुचे,
 माँ इंतज़ार में सड़क किनारे खड़ी है
जो कल तक अंधरे से डरती थी
वो आज बच्चों की खातिर जिद पर अडी है,

माँ, बहन, बीवी की इज्ज़त का लगा रहा है भाव,
 इंसान की नज़रों में रिश्तों की
अहिमयत का हो गया है आभाव,

ऐ खुदा दे दे हमें इतनी खैरात,
सभी इंसानों में हो पयार, मुहब्बत के जज्बात,

 ******राघव विवेक पंडित 


मेरा किसान


ये कैसा न्याय है,
समंदर प्यासा है, किसान भूखा है,
उसकी भूख और खून को
सरकारी तंत्र ने चूसा है,

माँ के होठों से अन्न और पानी
अछूता है, इसिलए माँ के आँचल से
दूध भी सुखा है.
उसके दूध मुहे बच्चे को गरीबी ने
 कर दिया शुन्य है,

 कल तक जो सबके लिए बोता था अनाज 
वो ही एक समस्या बन गया है आज

अफसर करेगा दौरा बचे खुचे अनाज का ले जायेगा बोरा,
देगा िदलासा नहीं रहेगा भूखा और प्यासा,
 नेता जी भी आयेंगे दिलासा दे कर जायेंगे,

मदद के नाम पर माँगा जायेगा
कुछ नेताओं द्वारा दान ,
कुछ पैसे की पीयेगे दारू,
कुछ पैसे से करेगे व्यापार 
और मेरे देश का भूखा किसान रहेगा 
वही लाचार का लाचार,

जो सरकार से मिलेगी मदद,
देखिये उसका क्या होगा हश्र  
मदद के नाम पर कागज़ पर खुदेगा कुआँ
पैसा खा जायेगा अफसर,
कागज़ खा जायेगा चूहा,
 अनाज दिया जायेगा एक कटोरा,
बताया जायेगा एक बोरा,

जो सबके लिए उगाता है रोटी, 
उसके लिए एक टुकड़ा मयस्सर नहीं,
क्या ये उसके ऊपर कहर नहीं....कहर नहीं....कहर नहीं

और मेरे देश के किसान की आँखों में आंसू 
और शाम का गहराता अँधेरा,
 एक और दिन भूखा और प्यासा रहने की चिंता,

 ******राघव विवेक पंडित 

बहार

तुम आ गई हो तो
हर साख गुलज़ार दिखती है,
 जमी तो  जमी,
आसमां पर पर भी बहार दिखती है,

सारी कायनात
तेरे दीदार कि प्यासी है,
तेरे आने से
वीरानो में भी बहार आती है,

 ******राघव विवेक पंडित 


Monday 6 February 2012

अजनबी दोस्त


अजनि ब्यों से दोस्ती की है
अपनों  का गम भुलाने के लिए ,
 देखते क्या मिलता है 
अब उन से दिल लगाने के लिए,

 अगर दर्द मिला ,
तो उसकी हमको आदत है,
 अगर जखम मिला
तो उसको भी हम अपना लेंगे
 यही है किश्मत ,
ये कह के मन को सम्झा लेंगे ,

हमें तो आदत है,
मन को समझाने की,
बीत जायेगा ये वक़्त भी,
ये कह कर भूल जाने की,

 अगर ख़ुशी मिली तो समझ जायेंगे ,
 कि आदत डाल ले दीवाने
अब मुश्कुराने की,
 लगता है कि नज़र बदल गई ज़माने की,
रहम आ गया
तुझ पे उपर वाले को,
 कभी हमारा दिन भी आएगा ,
ये सोच कर जीवन कट जायेगा,
इस उम्मीद के साथ
दीवाना खाक में मिल जायेगा,

***********राघव विवेक पंडित 

बेचारा सच

दुनिया में ये कैसा दौर है,
हर तरफ झूठों और मक्कारों का शोर है,
सच अपनी जान बचा रहा है,
झूठ सच के नाम पे खा रहा है,

सच बड़ा बेचारा है,
जो उसके साथ है, वो भी नहीं बता रहा है,

सच की भी क्या तकदीर है,
सच अकेला और झूठ के साथ भीड़ है,

सच बोलना तो गुनाह हो गया,
झूठ की भीड़ में
सच कहीं खो गया.





***********राघव विवेक पंडित 

बच्चों की जिज्ञासा


पापा वहां वो रामू पटरी पे क्यों रहता है,
उसकी रगों मैं भी तो हमारे जैसा लहू बहता है,

बेटा वो गरीब है,
पापा ये गरीब शब्द कहाँ लिखा है, इसकी क्या व्याख्या है,
पापा ये गरीब कहाँ से आता है,
क्या पटरी पे पैदा होता है और पटरी पे मर जाता है,
बेटा वो अनपढ़ है,
पापा मैंने देखा है वो पढ़ पता है,
 पापा उसका भी स्कूल मैं दाखिला  करा दो,
वो भी पढ़ जायेगा, उसका भी जनम सुधर जायेगा,

बेटा ये सब भगवान् की माया है,
पापा ये कैसी माया है,
किसी  को दो वक़्त रोटी नहीं, किसी  ने पूरा देश खाया है,

बेटा ये उसका नसीब है ,
पापा हमको और उसको जिसने बनाया है,
उसी ने लिखा  नसीब है,
एक जिन्दगी की बाँहों मैं है, और एक मौत के करीब है,

 पापा तुम उसकी पीड़ा नहीं समझ पाओगे,
तुम भी औरो की तरह दो रूपये दोगे
और आगे बढ़ जाओगे,

पापा वहां वो रामू पटरी पे क्यों रहता है,
उसकी रगों मैं भी तो हमारे जैसा लहू बहता है,

***********राघव विवेक पंडित 

चुनाव

आ गए चुनाव
सरकारी तंत्र का जनता पर अत्याचार
कहीं महगाई की मारा मरी
कहीं भ्रष्टाचार का उन्सुल्झा सवाल,
बीत गए इसी चक्कर में पांच साल,
आ गए चुनाव
नेताजी का ख़तम हुआ आराम
शुरू हो गई चिंता,
कहीं अब की बार हरा न दे जनता,

चुनाव की खबर से
वो झोपडी में रहने वाला रामू था बड़ा खुश,
ख़ुशी कि वजह पूछी, तो बोला
नेताजी ने पांच साल चूसा है मेरा खून,
लेकिन वो अब प्यार से बुलाएँगे,
सारी पीड़ा पूछेंगे और जूस पिलायेंगे,
नेताजी ने शाम को चुनाव कार्यालय पर रखी दावत
रामू को बोला सब को ले के आना,
वहां नेताजी करेंगे अपनी अच्छाइयों का बखान,
और फिर पिलायेंगे शराब और बढ़िया खानपान,

रामू भी करता है
बेसब्री से चुनाव का इंतज़ार
क्योंकि उसे पता है,
नेताजी वोट के लालच में चुनाव तक
खिलाने पिलाने में नहीं करेंगे विचार,
चुनाव के बाद नेताजी हो जायेगे गायब,
फिर वही महगाई की मार और
खाने को सुखी रोटी और अचार,

फिर नेताजी की बातों में आ गया गरीब
फिर नेताजी को समझ लिया
अपनी भावनाओ के करीब,
नेताजी को वोट दे के दिया जीता
जीतते ही नेताजी हो गए लापता,

फिर नेताजी करेंगे महगाई और भ्रष्टाचार
के नाम पे तमाशा,
और निकाला जायेगा फिर गरीब
जनता की भावनाओ का जनाजा,





***********राघव विवेक पंडित

ये मेरी जिन्दगी

ये मेरी जिन्दगी
साँसों की घुटन और
जीने के लिए मजबूरी और बेबसी,

मौत भी नहीं आती है,
हर पल जिन्दगी किसी न किसी
की याद दिला के,
जीने के लिए मजबूर कर जाती है,

इंसानी रिश्तों का क़र्ज़,
अपने बड़ों और बच्चों के
प्रति मेरा फ़र्ज़,
इन्सान रूपी परमात्मा के
बनाये कुछ दस्तूर.
मुझे कर रहे है, जीने पे मजबूर,

ये है मेरे अंतर्मन की व्यथा,
बस अब ये सब है मेरे सखा,

शायद जिन्दगी इसी का नाम है,
कभी ख़ुशी और कभी गम में
गुजरती अपनी शाम है,





***********राघव विवेक पंडित 

सियाह रातें

सियाह रातों से दोस्ती हो गई है,
चांदनी रात जाने कहाँ खो गई है,

आमवस्या की रात में मैं चाँद धुन्दता हु
मुहब्बत में टूटे अरमान धुन्दता हु

मुहब्बत में किसीने मुझसे छिनी चांदनी,
में उस चांदनी के निशान धुन्दता हु,

सियाह रातें मुझे सुकून दे रही है,
चांदनी से मुझे तपिश हो रही है,

अँधेरा मुझे प्यार कर रहा है,
मेरा साया भी मेरे साथ चल रहा है,

हम बैठे बैठे, ये कया सोचते है,
तेरे दिए जखम, आज भी तेरा पता पूछते है,

तुने मेरे साथ ऐसा क्यों किया
ये सवाल है,
तू नहीं मेरे साथ, ये नहीं खास बात है,
हाँ, तेरे दिया अँधेरा आज तक मेरे साथ है,





***********राघव विवेक पंडित 

आज का जीवन

पुरे वेग पे है हर एक तूफ़ान
जिन्दगी ले रही है हर
मोड़ पे इम्तहान,

हर इंसान हमें अजमा रहा है
हमें से हमारा ही
पता पूछा जा रहा है,

हम जिन्दगी को समझ नहीं पा रहे है,
बस जिन्दगी की उलझनों को
सुलझाने में दिन रात उलझे जा रहे है

कभी सत्ता के ठेकेदार महगाई का डर दिखाते है,
हम महगाई का नाम सुनते ही,
सहम से जाते है,

अभी संभल भी न पाए थे कि
स्कूल वालों ने फीस बढ़ा दी,
हमारी तो नींद ही उडा दी,

आमदनी अठन्नी खर्चा रुप्प्या
की कहावत सार्थक हो गई,
हमारी जिन्दगी घर के
हिसाब किताब में खो गई,

रात को सोचा सुबह मंदिर जायेगे
भगवान् को ही अपनी दुःख भरी व्यथा सुनाएगे,
वो ही करेगा अब समाधान,

उसे हमने अपनी दुःख भरी व्यथा सुनाई,
वो बोला, मैं रोज़ रोज़ इन समस्याओं को
सुनकर पहले ही परेशान हु भाई,

उसने हमें प्रसाद के रूप में गुड चना दिया थमा
ले इसे खा और अपनी जान बचा,
भागवान बोले, बेटा माहोल है बहुत खराब,
हर जगह रोटी से पहले मिलती है शराब,

बेटा कलयुग के इस दौर में,
मैं जैसे तैसे अपना ईमान बचा रहा हु,
रुखा सुखा खा के अपना जीवन बचा रहा हु,

भागवान की देख के ये दशा,
हमारे दुख, दर्द का सारा उतर गया नशा,

लगता है,
जिन्दगी भर इन परेशानियों से
लड़ते लड़ते हमारी आंखे रहेगी नम,
अब तो मरने के साथ ही मिटेंगे ये गम,





 ***********राघव विवेक पंडित 

बेचारा दिल

 हमारे तो ख्वाब, ख्वाब ही रह गए,
अरमान आंसुओं में बह गए,

जिसे दिल में बसाया था हमने कभी
वो अजनबी कहते है हमको अभी,

हमने जिनको समझा था अपना नसीब,
वो आज बैठे है गैरों के करीब,

हम उनसे प्यार करते है बे इन्तेहा,
पर उनके सितम की नहीं है इन्तेहा,

हमने भी बड़ा खुदगर्ज महबूब पाया है,
हमारी तकदीर पर सदा से बदनसीबी का साया है,

जाने क्यों हमें उन पे आज भी प्यार आता है,
नादान दिल उन्हें देख हाथों से निकला जाता है,

तेरे सितमो को, हम तेरी नादानिया समझते है,
यही सोच के ,
तो हम अब भी तुझ से प्यार करते है,

  ***********राघव विवेक पंडित 


आम आदमी

मैं आम आदमी हु,
मैं भी इस देश में रहता हु,
महगाई की मार, या हो किसी का
अत्याचार, उसकी पीड़ा
मैं ही सहता हु,

रोज़ कमाता हु रोज़ खाता हु,
और जिस दिन नहीं मिलता काम,
उस दिन खाने की राम राम,
न लुट जाने की चिंता, न खो जाने का गम,
मुझे भगवान पे भरोसा है, वही
मेरी चिंता ले के है सोता ,

कभी कभी मेरा भी मन
खास आदमी बनने का होता है,
मैंने सुना है,
लेकिन खास आदमी तो
झूठे, मक्कारों और धोखेबाजों के
साथ सोता है,

खास आदमी का खाना भी खास होता है,
उसके खाने में भूसा, बोफोर्स तोप और
स्पेक्ट्रुम होता है,
इतना खाने के बाद भी उसका पेट है खाली,
हर गरीब से छिनना चाहता है उसकी थाली,

कब इसका अत्याचार रुकेगा, जाने कब तक
ये सत्ता की कुर्सी पे बैठ कर
देश और देश की अबलाओं का चीरहरण करेगा,

ये मर जाये तो सेकड़ों एकड़ में दफनाया जाता है,
और आम आदमी को जिन्दा रहने पर भी
एक घर नहीं मिल पाता है,

इसकी इज्ज़त न बेईज्ज़ती होती है,
इसकी सेवा कभी जूतों, चप्पलों और
थप्पड़ों से होती है,

इसका न कोई धर्म और भगवान है,
इसका धर्म के नाम पर
आम आदमी को लूटना और लडवाना ईमान है,

मैं तो आम आदमी ही ठीक हु,
प्यार, इमानदारी ही मेरा गहना है,
मैं आम आदमी हु, और
आम आदमी मुझे रहना है,

   ***********राघव विवेक पंडित 


मेरी माँ


वो अलबेली है अजब पहेली है,
वो सबसे जुदा है उसमे खुदा है,

मृदुभाषी, सहनशील, सौन्दर्यवान है,
 पर उसे नहीं अभिमान है, 

वो ज्ञान का सागर है,सबको ज्ञान वो देती है,
 जाने किस मन मंथन मैं रहती है, 

वो शांत मन की स्वामिनी है,
पर उसके मन के शांत सागर मैं
कितने ही अशांत तूफ़ान है,

उसका फूलों सा सुंदर मन है,
होठों पे हंसी,
और मन मैं सेकड़ों काटों की चुभन हैं,

 दुनिया ने कितनी ही बार उसकी आत्मा को झंझोड़ दिया ,
 उसने सभी को माफ़ कर  दिया  और छोड़  दिया
यही बडडपन तो उसकी शान,
जो बनाती उसे महान है,

दुःख सह के , सब को सुख देती है,
तभी तो सब के मन मैं रहती है,

तप, त्याग ,धर्य, सहज, ये सब उसके गहने है,
उसकी आत्मा ने ये सब पहने है,

मैंने भी उसे नहीं देखा है,
 हाँ ख्यालों मैं खिची एक रेखा है,
उसकी सीरत से लगाया
ये अंदाज़ है,
 वो इस दुनिया से अलग
कुछ खास है,

 **********राघव विवेक पंडित 



Friday 3 February 2012

अश्क


अश्कों की कहानी इतनी पुरानी है
जितनी आसमा में चांदनी    
और समंदर में पानी है,

बेजुबान अश्क ही है 
जो हमेशा साथ रहते है 
यही तो तेरी आँखों में
ख़ुशी और गम
की निशानी है,

जब जुबान साथ नहीं देती 
अश्क सब कुछ कह जाते है,
जब तू घुट घुट के रोता है 
तब भी
ये तेरा साथ दिए जाते है,

अल्फ़ाज कम पड़ जाये 
ज़माना साथ न दे
आँखें डर से बंद हो जाये
ये न डरते है न घबराते है 
हमेशा ये बहते है 
तेरा दर्द
दुनिया को बयाँ करते है,


*******राघव विवेक पंडित**

नेता


कल तक
जो हाथ जोड़ घर पर आता था   
आज
उसका चेहरा सिर्फ
अखबार में दिखाई देता है,

कल तक
जो सभी परेशानियाँ दूर करने का 
वादा करता था
आज वही परेशान किये देता है,

कल तक 
जो हमारे बीच हमारा
भाई बन के रहता था,
आज वो
हमारे भविष्य और
हमारे देश का सौदा किये देता है

कल तक 
जो सब को अन्न और पानी देने का 
वादा करता था,
आज वो अन्न और पानी के
साथ खून भी पी लेता है,

इसने कभी न
हमारे बारे में सोचा है
इसने बस हमें पल पल 
दिया धोखा है 

ये जानवर हर पांच साल बाद 
आपके मोहल्ले में दिखाई देता है,
यारों और कोई नहीं 
ये आपका प्यारा नेता है,


          *****राघव विवेक पंडित***




Wednesday 1 February 2012

JHALAK

तेरी एक झलक बना देती
दीवाना है,
तुनने जहाँ जहाँ कदम रखा
आज वहां मयखाना है,

तेरी जुल्फें जो काँधे पर बिखर जायेंगी
हर तरफ
मस्ती सी छा जायेगी,

तेरी आँखें है या मयखाना है,
जिसे तुमने देखा
वो आज भी दीवाना है,

तेरे होठ जो लफ्जों को छू लेंगे,
सुनने वाले
बिना पिए ही झूमेंगे,

तुम में जो नशा है
वो मयखाने में कहाँ,
तुम्हारी एक झलक मिले,
तो झूमता है जहान,

**********राघव **

तेरा घर. तेरी याद

तू चली गई
एक ज़माना हो गया
तेरा घर
तुझे याद करके
तड़पने का बहाना हो गया,

उफ़ वो तेरा छत से
हमें देख मुश्कुराना
भीगी जुल्फों को झटक के
वो हम पे पानी गिराना

उफ़ वो तेरा छत पर
पेड़ों को पानी देते हुए
गिरते हुए पल्लू को उठाना,
फिर एक गुलाब को
तोड़कर बालों में लगाना और
फिर हमें देखकर शर्माते हुए
छत से नीचे भाग जाना,

वो तेरा गली में
मेरी आवाज़ सुनकर
तपती धुप में
गर्मी से बेखबर
पसीनो में तरबतर
छत पर आना,
और इशारों - इशारों में
प्यार का इज़हार करना,

उफ़ वो तेरा
किसी बात पे नाराज़ होकर
हमें देखकर जोर से
पटककर खिड़की बंद करना,

तेरे कमरे की बंद खिड़की
को देखकर
आज भी ऐसा लगता है कि
तुम अभी भी वही हो,
और किसी भी पल
खिड़की खोल सकती हो,
ये उम्मीद मुझे पल पल
उस खिड़की की तरफ देखने को
मजबूर करती है,

तेरा घर मेरी मुहब्बत का
फ़साना बन गया,
तुझे याद करके तड़पने का बहाना बन गया,

*******राघव पंडित***


MERE BACCHON KA GHAR

मेरे बच्चों ने अपने नन्हे नन्हे हाथों से एक छोटा सा घर बनाया है,

और वो अपने सपनों की तरह, सेकड़ों रंगों से सजाया है,


उसमे एक छोटा सा गुडिया का घर भी बनाया है,

िजसे उन्होंने बड़े सलीके से गुड्डे गुड़ियों से सजाया है,

िजसमे वो गुड्डे गुड़ियों की शादी रचायेंग,

और अपने सभी दोस्तों को बुलाएँगे,




उसमे पापा मम्मी का कमरा भी बनाया हैिजसमे एक छोटा से पलंग,

िसरहाने िकताब,और छोटा सा लंप भी लगाया है,



उसमे दादा दादी का कमरा भी बनाया है,

और उसमे उनकी यादों से जुडी हर चीज़ को बड़े सलीके से सजाया है,



उसमे एक कमरा और था, पूछातो बताया ये पप्पू का कमरा है,

जो घर के बाहर पटरी पे सोता है,

ज्यादा धुप और ज्यादा सर्दी मैं,वो वहीँ बैठ के रोता है,

वो हमारा दोस्त है, यही रह लेगा,हमारे साथ पढ़ेगा और खेलेगा,



उसमे एक छोटा सा दडबा भी बनाया है,

'मोती का घर' उस पे िल्ख्वाया है,मोती हमारा कुत्ता है,



मेरे बच्चों ने अपने नन्हे नन्हे हाथों से एक छोटा सा घर बनाया है,

और वो अपने सपनों की तरह, सेकड़ों रंगों से सजाया है,





********राघव


शिकस्ता दिल

नाकाम मुहब्बत की भी क्या तकदीर होती है,

एक तन्हाई में रोता है, एक घुट घुट की जीती है,


रुखसत भी घर से दोनों होते है,

एक घर से जाता है, (कब्रिस्तान)

एक घर को जाती है, (सुसराल)



जनाजा दोनों का उठता है,

एक दुनिया रोते हुए उठाती है,

एक दुनिया ख़ुशी से उठाती है,



दोनों ही दुनिया के दस्तूर निभाने चले है,

एक घर उजाड़ चला है,

एक घर बसाने चली है,



शिकस्ता दिलों की भी क्या तकदीर होती है,

एक दफ़न के बाद याद करके रोता है,

एक सुहाग की सेज पे याद करके रोती है.



मुहब्बत करने वालों को जुदा करना गुनाह है,

ऐसे गुनाहगारों के लिए,

खुदा के घर में भी न जगह है,



********राघव पंडित

मासूम मुहब्बत

तेरे कुचे से अब भी तेरी महक आती है,

उसकी दरों दीवार न जाने क्यों,

मुझे देख सहम सी JATI है



पूछती है,

क्या छोड़ गया था जो लेने आया है,

अब वो न यहाँ है न उसका साया है,



तुझे याद करके वो अश्क बहाती थी,

रुसवा न हो मुहब्बत, इस ख्याल से सहम सी जाती थी,



अब यहाँ उसके अश्क और रुसवाई है,

जो तेरी बेवफा मुहब्बत ने करवाई है,



तू बेवफा है उसे ये इल्म न था,

जो न सहा उसने, ऐसा कोई सितम न था,



वो तुझे मुहब्बत का खुदा समझती थी,

इसी गफलत में, वो तुझसे मुहब्बत करती थी,



उसने मरने तक अपनी दहलीज़ नहीं छोड़ी,

क्योकि उसे तेरा इंतज़ार था,

उसका चेहरा अश्कों से सरोबार था,

उसकी आखरी साँसों पे बस तेरा ही नाम था,



उसकी पाक मुहब्बत का तू गुनाहगार है,

जा देख उसकी कब्र पे,

उसे तुझ से कितना प्यार था,

उसने अपने नाम के साथ लिखवाया तेरा नाम था,



उस मासूम पे तुझे, थोडा तो तरस आया होता,

दफ़न से पहले एक बार तो चेहरा दिखाया होता,



***********राघव पंडित


मेरे जीवन मैं तुम

तु मेरे आंगन का वो गुलाब है.

जिसके आगे फीकाहर एक शबाब है,



तुम रात की रानी का वो पेड़ हो,

जो महकने के लिए रात का इंतज़ार नहीं करता,

जो सदा महकता रहता है,



जब में हारा थका शाम को घर आता हु,

और तुम मुझे दहलीज़ परपलकें बिछाएं इंतज़ार करते मिलती हो,

और मुश्कुराते हुए कहती हो आ गए,

तुम्हारी मुश्कान और मीठे मीठे शब्दों से मुझे तुम्हारे अथाह स्नेह की अनुभूति होती है,



तुम समंदर की गोद से मिलने वाला,

वो मोती हो जो एक सीपी से सिर्फ एक ही निकलता है

लेकिन उसको पाने की ख्वाइश सेकड़ो रखते है,



तुम अंजुली भर वो अमृत हो

जो मेरे घर और मन दोनों को पवित्र रखता है,

मेरी सखा, प्रेयसी और संगिनी सब तुम ही हो,



तुम मेरे जीवन रूपी समंदर में

उस पतवार की तरह हो जो धुप, छाव, वर्षा और तूफ़ान में

सदेव मेरा साथ देती है,



तुम मुझ में इस तरह शमाई हो,

अगर तुम मुझ से अलग हुई तो

शायद मेरा वजूद ही ख़त्म हो जायेगा,





***********राघव पंडित*

सब की उम्मीद

जंगल में जन्नत सजाने चला है,

जानवर को आदमी बनाने चला है,



हौसले पहाड़ से बुलंद है उसके

खुद को खुदगर्जों पे मिटाने चला है,



जो न हुए कभी अपनों के अपने,

उनको ये अपना समझने लगा है,



जो है सदियों से जिन्दा लाशें,

उनमे ये जीवन जगाने चला है,



जिन्हें रक्त पिशाचों (नेताओं ) की पूजा की आदत,

उन्हें ये राम रहीम की महिमा समझाने चला है,



कुछ तो कर गुजरेगा यारों ये काम,

सबको बड़ी उम्मीदे है उससे अन्ना है नाम





*********राघव पंडित


मेरी प्यारी दुनिया

बच्चों की बड़ी प्यारी दुनिया है,

मेरी भी दो मुनिया है,

मुझे बहुत वो प्यारी है,

इस दुनिया से वो न्यारी है,





एक शर्मीली विश है

तो एक चंचल ऐना है,

ये मेरे दो अनमोल मोती है,

मेरी आँखों की ज्योति है,

एक लक्ष्मी, तो एक दुर्गा का रूप है,

एक छाव तो एक धुप है,



विश बहुत सीधी साधी है,

सदा चुप रहने की आदि है,

सबका ध्यान वो रखती है,

सबसे प्यार वो करती है.

जीव उसे बहुत प्यारे है,

खरगोश, सफ़ेद चुहिया, कुत्ता,

ये सब रहते संग हमारे है,



ऐना बहुत चंचल और सैतान है,

वो ढेर सारे सवालों की खान है,

वो ज्ञान का सागर है,

देश विदेश की सभी ख़बरों से भरी उसकी गागर है,

उसके बड़े ऊँचे खवाब है,

उसके पास हर एक सवाल का जवाब है,

वो नन्ही सी बच्ची है, दिल की बहुत सच्ची है,




दोनों में आपस में बहुत प्यार है,

दोनों को संगीत का बहुत शौक है

उनकी पसंद नए पुराने गीत और पश्चिमी संगीत रोक है,

लेडी गागा, टेलर स्विफ्ट और जस्टिन

उनकी पसंद के संगीतकार है,



मैं इनमे अपने टूटे हुए सपनो और

ख्वाबो को सच होता देखता हु,

मैं इन की प्यारी-प्यारी शरारतों और बातों पे

ख़ुशी से हँसता हु तो कभी रो देता हु,




कभी कभी जब वो जिद्द करती है,

मुझसे आसानी से मनवा लेती है

थोडा सा रोती है और मेरे गुस्से को

आंसुओं में बहा देती है,




उनकी मीठी मीठी बातें,

उनकी प्यारी प्यारी शरारतें,

उनकी आँखों में पलते सेकड़ों सपने को

पूरा करने की कोशिश ही मेरा लक्ष्य है,

और यही मेरा प्यारा सा संसार है,




*********राघव पंडित*


कामयाबी का नशा

तुम क्या कर रही हो, कहाँ जा रही हो,

क्या तुमने कभी सोचा है,तुम क्या पाने के लिए क्या खो रही हो,

क्या तुमने कभी सोचा है,



तुम कामयाबी के नशे में इतनी

निष्ठुर हो गई हो,कि तुम्हे अपने

बच्चों की भूख प्यास नहीं दिखती

उनका रोना तुम्हे क्रोधित करता है,

आज तुम्हे अपना माँ होना

अभिशाप सा प्रतीत होता है,




तुम इतनी अभिमानी हो चुकी हो,

कि तुम्हे घर के बुजर्गों कि

कराहट सुनाई नहीं देती,

क्योकि तुम्हारे अभिमान ने तुम्हे

अँधा और बहरा कर दिया है,



तुम्हे अपने पति और बच्चों के लिए खाना बनाना,

अपने समय की बर्बादी लगता है,

बच्चों के कुछ पूछने पर चिल्लाने लगती हो,

बच्चे सहम से जाते है,

अब बच्चे भी कुछ पूछने से डरते हैं,

और तुम्हारा पति अब सिर्फ एक

घुटन भरी जिन्दगी जीने के लिए रह गया है,




अब तुम्हे पति और बच्चों की जरुरत नहीं,

तुम्हे जरुरत है उन लोगों की भीड़ की

जो तुम्हारी हर सही और गलत बात पर

वाह वाह करते है,



हर रिश्ता अब तुम्हे अपनी कामयाबी के

रास्ते की रुकावट लगता है,

पति और बच्चे तुम पर बोझ बन चुके है,



अगर कामयाबी इसी का नाम है,

तो मैं एक नाकामयाब आम इंसान ही ठीक हु,





*********राघव पंडित*

चांदनी रात

बरसों बाद चांदनी रात आई है,

बरसों जिन्दगी सियाह रातों में बिताई है,



था कोई जो दे गया था अँधेरा हमको,

उसकी दी हर चीज़ हमने दिल से लगाईं है,



क्या बदनसीबी है,

चांदनी रात में ही हमको मौत आई है,

हमें कब जीते जी चांदनी रात रास आई है,



चांदनी रात भी पलभर की सौदाई है,

दफ़न के बाद, फिर अँधेरा, उसकी यादें और तन्हाई है,





*********राघव पंडित***

जिन्दगी

जिन्दगी आज तुझ से कुछ बात कर लूं,

तेरे साथ बिताये कुछ लम्हों को याद कर लूँ,



जब तू आई मैं रो रहा था

माँ प्रसव की वेदना को भूल मुझे देख

बहुत खुश हो रही थी,मुझे देख सेकड़ो

सपने संजों रही थी,



थोडा बड़ा हुआ बचपन आया

हर लम्हे से मैंने एक सपना सजाया,

जो अब न कर सका वो बड़ा होकर करूँगा

अपनी माँ के हर सपने को साकार करूँगा,



जवानी आते आते,ये कैसा दौर आ गया,

मेरे देखे सपनो को, सूखे पत्तों सा उड़ा गया,

सपने देखना तो गुनाह हो गया,

हर एक इंसान खुदा हो गया,

इंसानों में इंसानियत ख़त्म हो गई,

माँ ने जो सिखाई थी ईमान,धर्म की बातें

वो कहाँ खो गई,



जिन्दगी तुने मेरा हर पल साथ दिया,

मैं ही खुदगर्ज़ और लालची था

जो तुझे भुला दिया,



जिन्दगी तू बहुत खुबसूरत है,

तुने मुझे जीने की लिए सब कुछ दिया,

मैं इंसान ही तेरे काबिल नहीं,

मैं ही तेरे दुःख सुख में शामिल नहीं,







**********राघव पंडित***

खुदगर्ज़

मैं खुदगर्ज़ अपने को कहूँ या खुदा को,

जिसने मुझे बनया मेरी वफ़ा को,

उसकी इबादत ही, मेरी वफ़ा है,

न करूँ इबादत,

तो वो मुझसे खफा है,



हर एक रिश्ता खुदगर्जी से भरा है,

इंसान का वजूद ही

खुदगर्जी से खड़ा है,



हर इंसान को

किसी न किसी से उम्मीद है

भगवान को भक्त से,

माँ बाप को संतान से,

पति को पत्नी से,

मालिक को नौकर से,

कवि को श्रोता से,



इंसान गली के कुत्ते को कुछ खाना देते हुए

ये सोचता है,ये मेरे घर की रखवाली करेगा,



जब खुदा ही खुदगर्ज़ है तो

उसकी खुदाई का क्या कसूर,

बाप के लहू का असर,

औलाद के लहू में होता है

कुछ न कुछ जरूर,





*********राघव पंडित***

गद्दारों का राज

गद्दारों का राज



संतों की धरती पर, राक्षसों का डेरा है,

गद्दारों के घरों पर,

देशभक्तों का पहरा है,



हर तरफ कलयुग की घटा छा रही है,

ये देख सतयुग की

छाती फटी जा रही है,



झूठे और बेईमानो का

हर ओर बोल बाला है,

सच्चे और ईमानदार को,

घर से झूठा कह निकला है,



नेताओं की नगरी है,

कहाँ वो किसी से डरता है,

देश सेवा के नाम पर

अपना घर भरता है,



इमानदारों की गैरत

कोडियों के भाव बिकती है,

बेईमानों की बेईमानी भी

इमानदारी सी दिखती है,



नजरिया बदल गया है

हर एक इंसान का,

चोरों का रास्ता भी,

अब तो लगता है ईमान का,



खुनी और गद्दारों की जेलों में

सेवा होती है,

देशभक्त शहीदों की माँ

पेंशन के लिए रोती है,



कल जिनको हमने अपना समझ

अपने घर में शरण दी,

उन्होंने ही आज हमारे

विश्वास और बच्चों की गर्दन कलम की,



देश में झूठे और मक्कारों के हाथ सत्ता,

और गद्दारों की भरमार है,

मेरे देश का हर एक

सच्चा देशप्रेमी,

बेबस और लाचार है,



अब अन्ना भी लायें है

सुधार के लिए लोकपाल की तलवार,

अब धीरे धीरे हो गए है

उनके साथ भी गद्दार,

अब देखते है तलवार क्या रंग दिखाती है,

या गद्दारों की टोली,

तलवार को ही खा जाती है,





***********राघव पंडित***

ये दूरी

मेरे कदम तुम्हारी ओर बढ़ने से पहले कई बार सोचते है,

मैं कुछ भी कहने से पहले कई बार सोचता हु,

क्योकि अब तुम्हारे पास मेरे लिए समय नहीं है,



एक समय था तुम मेरे साथ ज्यादा ज्यादा

समय बिताना चाहती थी,

एक समय वो था जब रोज़ शाम को

तुम मेरे आने का बेसब्री से

इंतज़ार करती थी,





आज वो समय है कि तुम

अपनी प्रसंसा करने वालों के

बीच घिरे रहना चाहती हो,

उनके द्वारा तुम्हारी प्रसंसा में कहे गए

शब्दों में खोई रहती हो,

मैं चाहकर भी तुमसे

अपने मन की बात नहीं पाता,





तुम और मैं आज एक साथ रहते हुए भी

एक साथ नही है,

तुम्हारे और मेरे बीच की दूरी,

जो दो कदम है

वो आज सौ कदम हो गई है,

मैं आज एक मूक दर्शक सा,

सिर्फ तुम्हारे चहरे पर आने वाले

भावों को देख सकता हु,

वो भाव जब बदलते है जब तुम्हे

अपने किसी प्रसंसक के द्वारा कहे

शब्द याद आते है,



मैं भी बहुत खुश होता हूँ

तुम्हे खुश देखकर,

लेकिन मैं डरता हूँ कि कहीं

ये दूरी इतनी न बढ़ जाये,

कि ये हमारा पवित्र रिश्ता,

एक समझोता बन के न रह जाये,



जीवन में कुछ पाने के लिए

संघर्ष करना प्रसंसनिये है,

जीवन में कुछ पाने के लिए

सब कुछ भूल जाना मुर्खता है,





  ******RAGHAV  PANDIT 


जिज्ञासा

ये कैसी जिज्ञासा है कुछ पाने की अभिलाषा है,

सब कुछ पाने के बाद भी

कुछ कमी महसूस होती है,

न जाने क्यों कभी कभी,

जोर जोर से रोने की इच्छा सी होती है,



रात दिन ये दौड़ धुप किस लिए कर रहा हूँ

ये सोच के परेशान सा हो जाता हूँ,



जब एक रुपया कमाता था

खुश रहता था

दाल रोटी खाता था और

चैन से सो जाता था,



अब सौ रुपया कमाता हूँ,

अब दाल रोटी खाने के लिए

समय का आभाव है,

और अब मेरे साथ बेचैनी और

मानसिक तनाव है,



मेरे अन्तर्मन ने मुझसे कहा,

तेरी जिज्ञासा जिसे पाने की है

वो है संतोष,

तुने खो दिए,

अपने अनंत लालच में होश,



अभिलाषाएं तो है अनंत,

जो कभी पूर्ण नहीं होती है,

लेकिन संतोष है वो

जिसमे सुखी जीवन की कुंजी छिपी होती है,





*********राघव पंडित**


तलाश

तलाश तलाश तलाश

ये कैसी तलाश है,

किसी को नौकरी की,

किसी को रोटी की,

किसी को प्यार की,

किसी को यार की,

कोई जीवन के लिए रोता है,

तो कोई मौत को

तलाश करता है,





इस तलाश का

एक ही जवाब है,

समय से पूर्व

अपनी हर इच्छा पूर्ण करना,

हर आदमी का ख्वाब है,



ये कर्म क्षेत्र है,

यहाँ तेरे कर्म और

प्रभु कीकृपा से सब मिलता है,



जो प्रभु और अपनी मेहनत

पर विस्वास करता है

संसार के सभी

सुख उसे तलाश करते है,





*******राघव पंडित**




mera kasoor

मैं कैसा इंसान हूँ,

सच बोलने का कसूरवार हूँ,

बचपन से

सच बोलते बोलते मैं थक गया,

जब भी बोला

सच हल्ला सा मच गया



विद्यालय मैं शिक्षक ने पढाया

सदा सच बोलो,

सच बोलना

तो वो सिखाता था,

लेकिन शिक्षक भी

सच बोलने से कतराता था,

वो भी विद्यालय के संरक्षकों की

झूठी प्रंशंसा करता था,

और अपने बच्चों का पेट भरता था,

शिक्षक को ज्ञान था ये कलयुग है,



झूठे और मक्कारों का

हर ओर बोल-बाला है,

सच और सच्चा

तो सिर्फ किताबों में ही रहता है,



झूठे और मक्कारों के

हाथ में मेरे देश की बागडोर है,

हर तरफ इनके

कारनामों का शोर है,



लेकिन इन सबको देखने के बाद भी

सच बोलने की प्रबल इच्छा होती है,

अगर झूठ बोलता हूँ तो

मेरी अंतरात्मा रोती है,



हे ईश्वर,

अब तू ही बता,

क्या कभी सच का दौर भी आएगा

या सच

यू ही घुट घुट के मर जायेगा,





*******राघव पंडित***

पल पल मुझसे

पल पल जिन्दगी

दामन छुड़ाती रही,

तुम पल पल

सपने सजाती रही,



मैं तिल तिल पल पल

मरता रहा,

तुम पल पल

मुझे निगाहों से गिराती रही,



मैं आँखों में मौत लिए

तुम्हे पल पल

याद करता रहा,

तुम पल पल

बंद पलकों में मुझे भुलाती रही,



मैं पल पल

तुम्हे देख जीता रहा,

तुम पल पल

मेरे मरने की दुआ करती रही,



मेरा पल पल

जनाजा घर से रुखसत होने लगा,

तुम पल पल

सुनहरे ख्वाबों में खोने लगी,



मुझे पल पल

खाक ने,

खाक बना दिया,

तुमने पल पल

मुझे अपने दिल और खवाबों से मिटा दिया



*********राघव पंडित**

मेरी दीवानगी

हम तेरी बेरुखी को भी

प्यार की एक शक्ल कहते है,

क्योकि हम

तेरी नाराजगी को भी प्यार कहते है,


तेरी निगाहों में

हमें वफ़ा की तस्वीर दिखती है,

जाने क्यों

फिर भी तू हमसे खफा खफा सी दिखती है,


तेरी निगाहों में भी

अजब जादू है ओ यारा,

नाराज नज़रों में लगे है

तू और भी प्यारा,



तेरे होठों में

गजब कशिश है ओ यारा,

तुझे जो देख ले

वो भूल जाये ये जहाँ सारा,


गजब खुशबु है

तेरे जिस्म की जो मेरी सांसों में लिपटी है,

तू है न जाने क्यों,

मेरे वजूद से छिपती है,


तुझे देखकर न जाने

क्यों सुलग उठती है मेरी साँसे,

तेरे ख्वाब भी जला जाते है,

मेरा दिल मेरी रातें,



*******राघव पंडित**