ये कैसा न्याय है,
समंदर प्यासा है, किसान भूखा है,उसकी भूख और खून को
सरकारी तंत्र ने चूसा है,
माँ के होठों से अन्न और पानी
अछूता है, इसिलए माँ के आँचल से
दूध भी सुखा है.
उसके दूध मुहे बच्चे को गरीबी ने
कर दिया शुन्य है,
कल तक जो सबके लिए बोता था अनाज
वो ही एक समस्या बन गया है आज
अफसर करेगा दौरा बचे खुचे अनाज का ले जायेगा बोरा,
देगा िदलासा नहीं रहेगा भूखा और प्यासा,
नेता जी भी आयेंगे दिलासा दे कर जायेंगे,
मदद के नाम पर माँगा जायेगा
कुछ नेताओं द्वारा दान ,
कुछ पैसे की पीयेगे दारू,
कुछ पैसे से करेगे व्यापार
और मेरे देश का भूखा किसान रहेगा
वही लाचार का लाचार,
जो सरकार से मिलेगी मदद,
देखिये उसका क्या होगा हश्र
मदद के नाम पर कागज़ पर खुदेगा कुआँ
पैसा खा जायेगा अफसर,
कागज़ खा जायेगा चूहा,
अनाज दिया जायेगा एक कटोरा,
बताया जायेगा एक बोरा,
जो सबके लिए उगाता है रोटी,
उसके लिए एक टुकड़ा मयस्सर नहीं,
क्या ये उसके ऊपर कहर नहीं....कहर नहीं....कहर नहींऔर मेरे देश के किसान की आँखों में आंसू
और शाम का गहराता अँधेरा,
एक और दिन भूखा और प्यासा रहने की चिंता,
******राघव विवेक पंडित
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