तू चली गई
एक ज़माना हो गया
तेरा घर
तुझे याद करके
तड़पने का बहाना हो गया,
उफ़ वो तेरा छत से
हमें देख मुश्कुराना
भीगी जुल्फों को झटक के
वो हम पे पानी गिराना
उफ़ वो तेरा छत पर
पेड़ों को पानी देते हुए
गिरते हुए पल्लू को उठाना,
फिर एक गुलाब को
तोड़कर बालों में लगाना और
फिर हमें देखकर शर्माते हुए
छत से नीचे भाग जाना,
वो तेरा गली में
मेरी आवाज़ सुनकर
तपती धुप में
गर्मी से बेखबर
पसीनो में तरबतर
छत पर आना,
और इशारों - इशारों में
प्यार का इज़हार करना,
उफ़ वो तेरा
किसी बात पे नाराज़ होकर
हमें देखकर जोर से
पटककर खिड़की बंद करना,
तेरे कमरे की बंद खिड़की
को देखकर
आज भी ऐसा लगता है कि
तुम अभी भी वही हो,
और किसी भी पल
खिड़की खोल सकती हो,
ये उम्मीद मुझे पल पल
उस खिड़की की तरफ देखने को
मजबूर करती है,
तेरा घर मेरी मुहब्बत का
फ़साना बन गया,
तुझे याद करके तड़पने का बहाना बन गया,
*******राघव पंडित***
एक ज़माना हो गया
तेरा घर
तुझे याद करके
तड़पने का बहाना हो गया,
उफ़ वो तेरा छत से
हमें देख मुश्कुराना
भीगी जुल्फों को झटक के
वो हम पे पानी गिराना
उफ़ वो तेरा छत पर
पेड़ों को पानी देते हुए
गिरते हुए पल्लू को उठाना,
फिर एक गुलाब को
तोड़कर बालों में लगाना और
फिर हमें देखकर शर्माते हुए
छत से नीचे भाग जाना,
वो तेरा गली में
मेरी आवाज़ सुनकर
तपती धुप में
गर्मी से बेखबर
पसीनो में तरबतर
छत पर आना,
और इशारों - इशारों में
प्यार का इज़हार करना,
उफ़ वो तेरा
किसी बात पे नाराज़ होकर
हमें देखकर जोर से
पटककर खिड़की बंद करना,
तेरे कमरे की बंद खिड़की
को देखकर
आज भी ऐसा लगता है कि
तुम अभी भी वही हो,
और किसी भी पल
खिड़की खोल सकती हो,
ये उम्मीद मुझे पल पल
उस खिड़की की तरफ देखने को
मजबूर करती है,
तेरा घर मेरी मुहब्बत का
फ़साना बन गया,
तुझे याद करके तड़पने का बहाना बन गया,
*******राघव पंडित***
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