हुश्न वालों का खुदा लगता है,
यार तू सबसे जुदा लगता है.
ऐसा कया है तेरी अंगड़ाई में,
हमें तू रोज़ जुदा लगता है,
तेरी जुल्फें जब लहराती है,
घटाएँ भी शर्मा के छुप जाती है,
तेरी निगाहों के तीरों वो ने काम िक्या,
हम खामोश रहे और दिल थाम िलया,
तू जो बहार निकले तो धुप निकलती है
तू जो घर पहुचे तो शाम ढलती है,
तुझे देख बागों में गुल खिलते है,
तेरे क़दमों को चूमने को मचलते है,
तू मुहब्बत का खुदा लगता है,
यार तू सबसे जुदा लगता है,
यार तू सबसे जुदा लगता है.
ऐसा कया है तेरी अंगड़ाई में,
हमें तू रोज़ जुदा लगता है,
तेरी जुल्फें जब लहराती है,
घटाएँ भी शर्मा के छुप जाती है,
तेरी निगाहों के तीरों वो ने काम िक्या,
हम खामोश रहे और दिल थाम िलया,
तू जो बहार निकले तो धुप निकलती है
तू जो घर पहुचे तो शाम ढलती है,
तुझे देख बागों में गुल खिलते है,
तेरे क़दमों को चूमने को मचलते है,
तू मुहब्बत का खुदा लगता है,
यार तू सबसे जुदा लगता है,
******राघव विवेक पंडित
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