Tuesday 7 February 2012

आशिक कि कलम से


मैं उसे कैसे माफ़ करूँ और कैसे भूल जाऊ ,
 उसे भूल के मैं किस से दिल लगाऊं,

वो मेरे खाव्बों मैं रोज़ आती है,
मेरी नींद ही उसे भूलने से रोक जाती है ,

उसका दिया दर्द मुझे उसकी याद दिलाता है,
वो कभी अपना था मुझे ये समझाता हैं,
मैं उसे न माफ़ करूँगा न भूल पाउँगा,
उसकी दी हर सौगात के
साथ जीऊंगा और मर जाऊंगा,

 **************राघव विवेक पंडित




 हम पर ज़माने ने सौ जुल्म किये ,
 हमने मय से की मुहब्बत, और सब भुला दिए ,

 हम खाली प्यालों से बात किया  करते हैं,
 वही हमारे दर्द मैं अब साथ दिया  करते हैं,
 असर न देख ज़माने के जुल्मों का,
दुनिया कहती ये दीवाना हैं,
कैसे समझाए मेरे यारों इन्हें ,
हमारी आदत ही हर बुरी सह को भूल जाना है,

 .......................राघव विवेक पंडित 



मय, साकी, मयखाना नाम है गम भुलाने की दवा का,
प्यार, मुहब्बत, वफ़ा, नाम है एक सजा का,
मय वफादार है जो गम भुलाती है,
मुहब्बत बे वफ़ा है, जो गम दे जाती है,
 साकी बड़े प्यार से पिलाता है,
और यार प्यार में दर्द दे जाता हैं,
 राघव तू भी लगा ले दिल मयखाने से,
और भुला दे गम ज़माने के ,
 ऐ खुदा मय पिने के बाद,
सब सच बोला जाता है,
मैंने सुना है जहाँ सच होता,
वहां तो तू भी आता है,

 ********राघव विवेक पंडित 


ख़ामोशी से ये दिल , आँखों से कह रहा है,
तू उसे याद करके मत रो, मुझसे लहू बह रहा है,
ऐ िदल तू समझ ले , वो बेवफा नहीं आएगी,
उसकी याद तुझे, खवाबों मैं भी तडपायेगी,
ये तेरा इंतज़ार करना बेकार है,
 अब उसकी यादें , उसके दिए जखम, उसका दिया दर्द ,
यही तेरा प्यार है,

 लगा मत िदल ज़माने से , यहाँ बस दर्द मिलता  हैं,
 किसी पे जान जाती है, किसी से जखम िमलता हैं,
 कोई अब दिलासा देगा , वो ही कल मार डालेगा,
 तू जिन्दा रहा तो , यही सब दर्द पलेगा,

 .................राघव विवेक पंडित 






बेवफा तेरा हर एक अंदाज़ याद आता है,
 और दिल रह रह के अश्क बहाता है,

 बेवफा तुने जो जखम दिए है मुझको,
 उनसे लहू रह रह के निकल जाता है,

तुने मेरे प्यार को अजाब बना डाला,
मेरी मुहब्बत को मजाक बना डाला,

सदा खुश रहे तू, हम तो दुआ करते हैं,
तेरी बेवफाई को रह रह कर याद करते है,

 ................... राघव विवेक पंडित 


उस की एक झलक पाने के बाद ,आया ये ख्याल है,
तू ही गुलाब है तू ही बहार है,
तू ही सावन है, तू ही सावन की नन्ही-नन्ही फुहार है,
तू ही प्यार है, तू ही ईकरार है,
तू ही मुहब्बत है, तू ही वफ़ा है,
 तू ही क़यामत है, तू ही निगाह है,
तू ही दर्द है, तू ही मरहम है,
तू ही मेरे प्यार की मीठी मीठी सरगम है,
तू ही आंधी है, तू ही घटा है,
 तुझे पाना मुहब्बत मैं आशिक का इम्तिहान है,
तू ही मेरा जख्म है तू ही मेरी दवा है,
तू ही मेरा खवाब है, तू ही मेरे खवाबों की ताबीर है,
तू ही मेरी सांस है, तू ही मेरा अह्सांस है,
तू मेरे लहू मैं इस तरह समाई है,
कि  मैं देखता हु आइना, उस मैं भी तू ही नज़र आई है,
करम कर इस तलबगार पे,
 ले ले जान, और दे दे एक झलक  प्यार की,
 अब तेरे बिन न रहा जायेगा,
क्या मेरा प्यार एक खवाब बन के रह जायेगा,
ऐ खुदा मेरे महबूब को गुनाहगार मत समझना
 क्योकि मेरे ख्वाब पे मेरा हक है,
उनके प्यार पे नही

 ************राघव  विवेक  पंडित




तुम कहाँ हो, यहाँ हो..वहां हो
जहाँ देखता हु मुझे तुम ही तुम
नज़र आती हो

तुम मुझ मैं इस तरह समां चुकी हो
मैं अपने आप मैं तम्हारी खुशबु ,

मेरे आसपास तुम्हारे होने का अहसास ,
मेरी परछाई भी अब तुम्हरी परछाई लगती है
इन हवाओं मैं तुम्हारी जुल्फों की महक आती है
इन झरनों से गिरते पानी की आवाज़ से,
मुझे ऐसा लगता है जैसे तुम कुछ गुन-गुना रही हो
इन पेड़ों की घनी छाँव,
मुझे तुम्हारे दुप्पटे की छाँव का अहसास कराती है
मैं इस माटी मैं जज्ब हो कर भी तुम्हे भूल न सका,
मुझे इस कब्रिस्तान मैं,
अपने महबूब की यादों के सहारे रहने दो,
ऐ खुदा मुझे तुझसे कुछ नहीं चाहिए,
बस इतना अहसान कर दे
मेरे महबूब की माटी को
एक हवा के झोके से
मेरे महबूब की कब्र की माटी को
मेरी कब्र की माटी मैं जज्ब कर दे
और मेरी रूह को सकूँ दे दे
मैं अपने महबूब की यादों के सहारे
सौ जनम तक, क़यामत तक,
काटों मैं भी फूलों का अहसास कर सकता हु

         *********राघव विवेक पंडित 

























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