काश सभी दुखी इन्सान
रात के सन्नाटे में कमरे में रोते,
आंसू पोछने को
हमदर्द हाथ तो न होते,
वहां होते सिर्फ
कमरे के चार सूनसान कोने
जो रहते तो है साथ
लेकिन दुःख में
एक दुसरे के आंसू
भी नहीं पोंछ पाते,
होती वहां एक चारपाई
जिसको घर के सभी लोगों ने
रो रो के सुनाया होता
अपना दुःख,
लेकिन उसकी पीड़ा
किसी न सुनी होती,
वहां होता एक पंखा
जिसने अपनी आवाज़ में,
घर के कितने ही लोगों
के रोने की आवाज़ दबा दी,
लेकिन उसकी आवाज़
कोई न सुन सका,
वहां होता एक खाली गिलास
जिसका पानी पिने के बाद
रोते लोगों की प्यास
हुई शांत,
लेकिन वो आज भी
खाली का खाली,
*********राघव विवेक पंडित
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