तुम क्या कर रही हो, कहाँ जा रही हो,
क्या तुमने कभी सोचा है,तुम क्या पाने के लिए क्या खो रही हो,
क्या तुमने कभी सोचा है,
तुम कामयाबी के नशे में इतनी
निष्ठुर हो गई हो,कि तुम्हे अपने
बच्चों की भूख प्यास नहीं दिखती
उनका रोना तुम्हे क्रोधित करता है,
आज तुम्हे अपना माँ होना
अभिशाप सा प्रतीत होता है,
तुम इतनी अभिमानी हो चुकी हो,
कि तुम्हे घर के बुजर्गों कि
कराहट सुनाई नहीं देती,
क्योकि तुम्हारे अभिमान ने तुम्हे
अँधा और बहरा कर दिया है,
तुम्हे अपने पति और बच्चों के लिए खाना बनाना,
अपने समय की बर्बादी लगता है,
बच्चों के कुछ पूछने पर चिल्लाने लगती हो,
बच्चे सहम से जाते है,
अब बच्चे भी कुछ पूछने से डरते हैं,
और तुम्हारा पति अब सिर्फ एक
घुटन भरी जिन्दगी जीने के लिए रह गया है,
अब तुम्हे पति और बच्चों की जरुरत नहीं,
तुम्हे जरुरत है उन लोगों की भीड़ की
जो तुम्हारी हर सही और गलत बात पर
वाह वाह करते है,
हर रिश्ता अब तुम्हे अपनी कामयाबी के
रास्ते की रुकावट लगता है,
पति और बच्चे तुम पर बोझ बन चुके है,
अगर कामयाबी इसी का नाम है,
तो मैं एक नाकामयाब आम इंसान ही ठीक हु,
*********राघव पंडित*
क्या तुमने कभी सोचा है,तुम क्या पाने के लिए क्या खो रही हो,
क्या तुमने कभी सोचा है,
तुम कामयाबी के नशे में इतनी
निष्ठुर हो गई हो,कि तुम्हे अपने
बच्चों की भूख प्यास नहीं दिखती
उनका रोना तुम्हे क्रोधित करता है,
आज तुम्हे अपना माँ होना
अभिशाप सा प्रतीत होता है,
तुम इतनी अभिमानी हो चुकी हो,
कि तुम्हे घर के बुजर्गों कि
कराहट सुनाई नहीं देती,
क्योकि तुम्हारे अभिमान ने तुम्हे
अँधा और बहरा कर दिया है,
तुम्हे अपने पति और बच्चों के लिए खाना बनाना,
अपने समय की बर्बादी लगता है,
बच्चों के कुछ पूछने पर चिल्लाने लगती हो,
बच्चे सहम से जाते है,
अब बच्चे भी कुछ पूछने से डरते हैं,
और तुम्हारा पति अब सिर्फ एक
घुटन भरी जिन्दगी जीने के लिए रह गया है,
अब तुम्हे पति और बच्चों की जरुरत नहीं,
तुम्हे जरुरत है उन लोगों की भीड़ की
जो तुम्हारी हर सही और गलत बात पर
वाह वाह करते है,
हर रिश्ता अब तुम्हे अपनी कामयाबी के
रास्ते की रुकावट लगता है,
पति और बच्चे तुम पर बोझ बन चुके है,
अगर कामयाबी इसी का नाम है,
तो मैं एक नाकामयाब आम इंसान ही ठीक हु,
*********राघव पंडित*
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