हम जिन्दगी को
आंसुओं का समंदर कहते है
क्योकि आंसू उम्रभर बहते है,
बचपन से
आंसुओं का सैलाब आँखों में होता है,
बचपन कभी माँ और
कभी बाप के लिए रोता है,
आँखे जाने कितने
सपने आँखों में संजोती है,
साकार न होने पर
यही फूट फूट के रोती है,
मुहब्बत हर पल
महबूब के लिए आँखें बिछाए रहती है,
मुहब्बत इनकार हो या इकरार
दोनों आँखों से कहती है,
जुदा होने पर महबूब से
यही आँखें दरिया सी बहती है,
जब दिन के बुरे ख्याल रात को
ख्वाबों में डराते है,
तब ये आंसू खुद बा खुद
आँखों में आ जाते है,
माँ बाप की यादें हो या
बेटी की विदाई की बातें हो,
आँखे आंसुओं से भर जाती है,
हर दर्द में आँखें आंसू बहाती है
मरने के बाद भी
आंसुओं के इंतज़ार में,
ये खुली रह जाती है,
ख़ुशी हो या गम आँखों से बयाँ होता है,
दोनों ही सूरत में आँखों में आंसू होता है,
*********राघव विवेक पंडित**
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