आ गए चुनाव
सरकारी तंत्र का जनता पर अत्याचार
कहीं महगाई की मारा मरी
कहीं भ्रष्टाचार का उन्सुल्झा सवाल,
बीत गए इसी चक्कर में पांच साल,
आ गए चुनाव
नेताजी का ख़तम हुआ आराम
शुरू हो गई चिंता,
कहीं अब की बार हरा न दे जनता,
चुनाव की खबर से
वो झोपडी में रहने वाला रामू था बड़ा खुश,
ख़ुशी कि वजह पूछी, तो बोला
नेताजी ने पांच साल चूसा है मेरा खून,
लेकिन वो अब प्यार से बुलाएँगे,
सारी पीड़ा पूछेंगे और जूस पिलायेंगे,
नेताजी ने शाम को चुनाव कार्यालय पर रखी दावत
रामू को बोला सब को ले के आना,
वहां नेताजी करेंगे अपनी अच्छाइयों का बखान,
और फिर पिलायेंगे शराब और बढ़िया खानपान,
रामू भी करता है
बेसब्री से चुनाव का इंतज़ार
क्योंकि उसे पता है,
नेताजी वोट के लालच में चुनाव तक
खिलाने पिलाने में नहीं करेंगे विचार,
चुनाव के बाद नेताजी हो जायेगे गायब,
फिर वही महगाई की मार और
खाने को सुखी रोटी और अचार,
फिर नेताजी की बातों में आ गया गरीब
फिर नेताजी को समझ लिया
अपनी भावनाओ के करीब,
नेताजी को वोट दे के दिया जीता
जीतते ही नेताजी हो गए लापता,
फिर नेताजी करेंगे महगाई और भ्रष्टाचार
के नाम पे तमाशा,
और निकाला जायेगा फिर गरीब
जनता की भावनाओ का जनाजा,
***********राघव विवेक पंडित
सरकारी तंत्र का जनता पर अत्याचार
कहीं महगाई की मारा मरी
कहीं भ्रष्टाचार का उन्सुल्झा सवाल,
बीत गए इसी चक्कर में पांच साल,
आ गए चुनाव
नेताजी का ख़तम हुआ आराम
शुरू हो गई चिंता,
कहीं अब की बार हरा न दे जनता,
चुनाव की खबर से
वो झोपडी में रहने वाला रामू था बड़ा खुश,
ख़ुशी कि वजह पूछी, तो बोला
नेताजी ने पांच साल चूसा है मेरा खून,
लेकिन वो अब प्यार से बुलाएँगे,
सारी पीड़ा पूछेंगे और जूस पिलायेंगे,
नेताजी ने शाम को चुनाव कार्यालय पर रखी दावत
रामू को बोला सब को ले के आना,
वहां नेताजी करेंगे अपनी अच्छाइयों का बखान,
और फिर पिलायेंगे शराब और बढ़िया खानपान,
रामू भी करता है
बेसब्री से चुनाव का इंतज़ार
क्योंकि उसे पता है,
नेताजी वोट के लालच में चुनाव तक
खिलाने पिलाने में नहीं करेंगे विचार,
चुनाव के बाद नेताजी हो जायेगे गायब,
फिर वही महगाई की मार और
खाने को सुखी रोटी और अचार,
फिर नेताजी की बातों में आ गया गरीब
फिर नेताजी को समझ लिया
अपनी भावनाओ के करीब,
नेताजी को वोट दे के दिया जीता
जीतते ही नेताजी हो गए लापता,
फिर नेताजी करेंगे महगाई और भ्रष्टाचार
के नाम पे तमाशा,
और निकाला जायेगा फिर गरीब
जनता की भावनाओ का जनाजा,
***********राघव विवेक पंडित
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