उन्होंने शिरकत की है बन के कहर,
खुदा बचाए अब हम आशिकों शहर,
वो मुहब्बत में क़त्ल करने वालों के खुदा है,
ये मुहब्बत में मरने वालों का बयां है,
हमने भी जब मौत से कर ली है दोस्ती,
अब न हो पायेगी चाह कर भी बे रुखी,
उनकी अदायें क़त्ल का सामान है,
अब हमारी जिन्दगी भी दो पल की मेहमान है,
एक निगाह में उनकी सेकड़ों अंगारे है,
या खुदा बताये अब हम किसके सहारे है,
******राघव विवेक पंडित
खुदा बचाए अब हम आशिकों शहर,
वो मुहब्बत में क़त्ल करने वालों के खुदा है,
ये मुहब्बत में मरने वालों का बयां है,
हमने भी जब मौत से कर ली है दोस्ती,
अब न हो पायेगी चाह कर भी बे रुखी,
उनकी अदायें क़त्ल का सामान है,
अब हमारी जिन्दगी भी दो पल की मेहमान है,
एक निगाह में उनकी सेकड़ों अंगारे है,
या खुदा बताये अब हम किसके सहारे है,
******राघव विवेक पंडित
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