तुम मेरी प्राणप्यारी, संगिनी,
दामिनी, प्रेयसी और मेरे
हरदय की धड़कन हो,
तुम्हारे बिना में इस जीवन की
कल्पना भी नहीं कर सकता,
तुम सदा मेरे साथ रहती हो
कर्म क्षेत्र में
मेरी प्रेरणा बनकर,
युद्ध क्षेत्र
में मेरी शक्ति बनकर,
तुम मेरे जीवन का वो
संगीत हो
जिसके बिना मेरे जीवन का
हर सुर अधुरा है,
तुम मेरे जीवन के हर संघर्ष
मेरी परछाई की तरह मेरे
साथ हो,
तुम मुझ में ऐसे समायी हो
जैसे मेरे शरीर की धमनियों में
बहने वाला रक्त,
जिव्हा से लार, चक्षु से रौशनी,
हरदय से धड़कन,
तुम्हारे बिना में इस जीवन की
कल्पना भी नहीं कर सकता,
******राघव विवेक पंडित
दामिनी, प्रेयसी और मेरे
हरदय की धड़कन हो,
तुम्हारे बिना में इस जीवन की
कल्पना भी नहीं कर सकता,
तुम सदा मेरे साथ रहती हो
कर्म क्षेत्र में
मेरी प्रेरणा बनकर,
युद्ध क्षेत्र
में मेरी शक्ति बनकर,
तुम मेरे जीवन का वो
संगीत हो
जिसके बिना मेरे जीवन का
हर सुर अधुरा है,
तुम मेरे जीवन के हर संघर्ष
मेरी परछाई की तरह मेरे
साथ हो,
तुम मुझ में ऐसे समायी हो
जैसे मेरे शरीर की धमनियों में
बहने वाला रक्त,
जिव्हा से लार, चक्षु से रौशनी,
हरदय से धड़कन,
तुम्हारे बिना में इस जीवन की
कल्पना भी नहीं कर सकता,
******राघव विवेक पंडित
No comments:
Post a Comment