सितम उनके हम पे यूँ होते रहे
प्यार के बोझ को,
हम उनके यूँ ढोते रहे ,
चाहकर भी उनसे
हम कह न सके,
घुटन होती रही
अश्क बह न सके,
आँखों में अश्कों का
दरिया लिए,
कोई कब तक जिए,
ख्वाबों में आई दरारों को
कोई कब तक सिये,
जो उजालों के खुदा
लगते थे,
वो सियाह अंधेरों के
मेहरबान हो गए,
जिन्दगी यूँ ही करवटें
बदलती रही,
सेकड़ों फासलें
दरमियाँ हो गए,
*******राघव विवेक पंडित
प्यार के बोझ को,
हम उनके यूँ ढोते रहे ,
चाहकर भी उनसे
हम कह न सके,
घुटन होती रही
अश्क बह न सके,
आँखों में अश्कों का
दरिया लिए,
कोई कब तक जिए,
ख्वाबों में आई दरारों को
कोई कब तक सिये,
जो उजालों के खुदा
लगते थे,
वो सियाह अंधेरों के
मेहरबान हो गए,
जिन्दगी यूँ ही करवटें
बदलती रही,
सेकड़ों फासलें
दरमियाँ हो गए,
*******राघव विवेक पंडित
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