ये कैसी जिज्ञासा है कुछ पाने की अभिलाषा है,
सब कुछ पाने के बाद भी
कुछ कमी महसूस होती है,
न जाने क्यों कभी कभी,
जोर जोर से रोने की इच्छा सी होती है,
रात दिन ये दौड़ धुप किस लिए कर रहा हूँ
ये सोच के परेशान सा हो जाता हूँ,
जब एक रुपया कमाता था
खुश रहता था
दाल रोटी खाता था और
चैन से सो जाता था,
अब सौ रुपया कमाता हूँ,
अब दाल रोटी खाने के लिए
समय का आभाव है,
और अब मेरे साथ बेचैनी और
मानसिक तनाव है,
मेरे अन्तर्मन ने मुझसे कहा,
तेरी जिज्ञासा जिसे पाने की है
वो है संतोष,
तुने खो दिए,
अपने अनंत लालच में होश,
अभिलाषाएं तो है अनंत,
जो कभी पूर्ण नहीं होती है,
लेकिन संतोष है वो
जिसमे सुखी जीवन की कुंजी छिपी होती है,
*********राघव पंडित**
सब कुछ पाने के बाद भी
कुछ कमी महसूस होती है,
न जाने क्यों कभी कभी,
जोर जोर से रोने की इच्छा सी होती है,
रात दिन ये दौड़ धुप किस लिए कर रहा हूँ
ये सोच के परेशान सा हो जाता हूँ,
जब एक रुपया कमाता था
खुश रहता था
दाल रोटी खाता था और
चैन से सो जाता था,
अब सौ रुपया कमाता हूँ,
अब दाल रोटी खाने के लिए
समय का आभाव है,
और अब मेरे साथ बेचैनी और
मानसिक तनाव है,
मेरे अन्तर्मन ने मुझसे कहा,
तेरी जिज्ञासा जिसे पाने की है
वो है संतोष,
तुने खो दिए,
अपने अनंत लालच में होश,
अभिलाषाएं तो है अनंत,
जो कभी पूर्ण नहीं होती है,
लेकिन संतोष है वो
जिसमे सुखी जीवन की कुंजी छिपी होती है,
*********राघव पंडित**
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