पुरे वेग पे है हर एक तूफ़ान
जिन्दगी ले रही है हर
मोड़ पे इम्तहान,
हर इंसान हमें अजमा रहा है
हमें से हमारा ही
पता पूछा जा रहा है,
हम जिन्दगी को समझ नहीं पा रहे है,
बस जिन्दगी की उलझनों को
सुलझाने में दिन रात उलझे जा रहे है
कभी सत्ता के ठेकेदार महगाई का डर दिखाते है,
हम महगाई का नाम सुनते ही,
सहम से जाते है,
अभी संभल भी न पाए थे कि
स्कूल वालों ने फीस बढ़ा दी,
हमारी तो नींद ही उडा दी,
आमदनी अठन्नी खर्चा रुप्प्या
की कहावत सार्थक हो गई,
हमारी जिन्दगी घर के
हिसाब किताब में खो गई,
रात को सोचा सुबह मंदिर जायेगे
भगवान् को ही अपनी दुःख भरी व्यथा सुनाएगे,
वो ही करेगा अब समाधान,
उसे हमने अपनी दुःख भरी व्यथा सुनाई,
वो बोला, मैं रोज़ रोज़ इन समस्याओं को
सुनकर पहले ही परेशान हु भाई,
उसने हमें प्रसाद के रूप में गुड चना दिया थमा
ले इसे खा और अपनी जान बचा,
भागवान बोले, बेटा माहोल है बहुत खराब,
हर जगह रोटी से पहले मिलती है शराब,
बेटा कलयुग के इस दौर में,
मैं जैसे तैसे अपना ईमान बचा रहा हु,
रुखा सुखा खा के अपना जीवन बचा रहा हु,
भागवान की देख के ये दशा,
हमारे दुख, दर्द का सारा उतर गया नशा,
लगता है,
जिन्दगी भर इन परेशानियों से
लड़ते लड़ते हमारी आंखे रहेगी नम,
अब तो मरने के साथ ही मिटेंगे ये गम,
***********राघव विवेक पंडित
जिन्दगी ले रही है हर
मोड़ पे इम्तहान,
हर इंसान हमें अजमा रहा है
हमें से हमारा ही
पता पूछा जा रहा है,
हम जिन्दगी को समझ नहीं पा रहे है,
बस जिन्दगी की उलझनों को
सुलझाने में दिन रात उलझे जा रहे है
कभी सत्ता के ठेकेदार महगाई का डर दिखाते है,
हम महगाई का नाम सुनते ही,
सहम से जाते है,
अभी संभल भी न पाए थे कि
स्कूल वालों ने फीस बढ़ा दी,
हमारी तो नींद ही उडा दी,
आमदनी अठन्नी खर्चा रुप्प्या
की कहावत सार्थक हो गई,
हमारी जिन्दगी घर के
हिसाब किताब में खो गई,
रात को सोचा सुबह मंदिर जायेगे
भगवान् को ही अपनी दुःख भरी व्यथा सुनाएगे,
वो ही करेगा अब समाधान,
उसे हमने अपनी दुःख भरी व्यथा सुनाई,
वो बोला, मैं रोज़ रोज़ इन समस्याओं को
सुनकर पहले ही परेशान हु भाई,
उसने हमें प्रसाद के रूप में गुड चना दिया थमा
ले इसे खा और अपनी जान बचा,
भागवान बोले, बेटा माहोल है बहुत खराब,
हर जगह रोटी से पहले मिलती है शराब,
बेटा कलयुग के इस दौर में,
मैं जैसे तैसे अपना ईमान बचा रहा हु,
रुखा सुखा खा के अपना जीवन बचा रहा हु,
भागवान की देख के ये दशा,
हमारे दुख, दर्द का सारा उतर गया नशा,
लगता है,
जिन्दगी भर इन परेशानियों से
लड़ते लड़ते हमारी आंखे रहेगी नम,
अब तो मरने के साथ ही मिटेंगे ये गम,
***********राघव विवेक पंडित
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