मैं सच
चिल्लाता हूँ
सुने कोई
मैं सच
घायल तड़पता हूँ
मरहम लगा दे कोई,
मैं ईमान
कोडियों के भाव बिकता हूँ
ले ले कोई
मैं ईमान
भूखा तडपता हूँ
कुछ खिला दे कोई
कोई घर से बहार तो निकलो
देखो तो एक बार,
क्या आज
मेरा कोई साथी नहीं,
बचपन में तुमने मुझे
अपनी किताबों में पढ़ा है,
तुम मेरी
दिन में कई बार कसम लेते हो,
लेकिन जब मैं आता हूँ
तो तुम मुझे
झूठ और बेईमानी के
पाँव तले
रोंद देते हो,
तुम मुझसे लाख बचों
झूठ और बेईमान के
साथ सौ षड्यंत्र रचों ,
तुम मुझे न भुला पाओगे,
जब भी देखोगे आइना
खुद से भी नज़र बचाओगे
******राघव विवेक पंडित****
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