दर्द दिल में न हो
तो कलम कैसे
दर्द लिख पाएगी,
दर्द दिल में न हो
तो कैसे लफ्जों में
दर्द आता है,
जख्म खाए बगैर
कैसे कोई
जख्मी दिल का
दर्द बयां कर पायेगा,
लहू का एक
कतरा बहाए बगैर
कैसे कोई
मुहब्बत की रुसवाई पर
लिख पायेगा,
हम दीवानों ने
जब भी दर्द दिल का बयाँ किया
जमाने ने उसे दिल्लगी बना दिया,
*******राघव विवेक पंडित
तो कलम कैसे
दर्द लिख पाएगी,
दर्द दिल में न हो
तो कैसे लफ्जों में
दर्द आता है,
जख्म खाए बगैर
कैसे कोई
जख्मी दिल का
दर्द बयां कर पायेगा,
लहू का एक
कतरा बहाए बगैर
कैसे कोई
मुहब्बत की रुसवाई पर
लिख पायेगा,
हम दीवानों ने
जब भी दर्द दिल का बयाँ किया
जमाने ने उसे दिल्लगी बना दिया,
*******राघव विवेक पंडित
No comments:
Post a Comment