हटा मत चेहरे से जुल्फें
तुझे देख नहीं
झुकती पलकें,
चाँद जैसे
बदरी से हो घिरा,
नीले आसमां में
जैसे बादल बिखरा,
तू समेटें क़यामत
चेहरे पे
लाखों जुल्फों के
पहरे में,
चेहरे की तेरे
मादकता
और बढाती है जुल्फें,
जो देखे मदमस्त
हो जाये,
नशा और बढ़ाती है
जुल्फें,
*******राघव विवेक पंडित
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