पढाई पूरी कर
गाँव में खेत की
मेढ़ पर बैठ
में सोच रहा था उन सपनो के बारे में
जो मैंने बचपन से जवानी
तक देखे
अब समय था उन सपनो को
सार्थक करने का,
लेकिन मेरा दायित्व
मुझे पहले
माँ बाप की उन उम्मीदों
पूरा करने के लिए
मजबूर कर रहा था
जो वर्षों से में उनकी
आँखों में देखता आ रहा था
माँ बाप ने खून पसीना एक कर
जो कमाया
मेरी पढाई पर खर्च किया
बहन की शादी के लिए जो
पैसे जमा किये
वो सब भी मेरी पढाई में
खर्च हो गए,
पाई पाई जमा की थी
कुआँ खुदवाने को
वो सब पूंजी भी पढाई
की भेंट चढ़ गई,
उसके अलावा कुछ लोगों से भी
क़र्ज़ लिया था
अपने सपनो को भूल
मेरे सपनो को पूरा करने में
पाई पाई लगा दी
इस उम्मीद पर
एक दिन ये हमारे सभी
सपने पुरे करेगा
अब समय आया था
उन्हें पूरा करने का,
बैठे बैठे
सोचते सोचते
शाम ढल गई
मैं निर्णय न ले पाया
कि मैं अपने सपने पूर्ण करूँ या
माँ बाउजी कि उम्मीद पर
खरा उतरूं,
मैं रात को भी
एक पल न सो पाया
सुबह जाना था शहर
सुना था वहां होते है सभी के
सपने पूर्ण,
सुबह जब जाने लगा
तो माँ बाउजी और
मेरी छोटी बहन द्वार पर
मुझे विदा करने को
आँखों में आंसू लिए खड़े थे,
माँ बाउजी ने मुझे विदा करते हुए
सिर्फ एक ही बात कही
बेटे अपना ध्यान रखना,
बहुत सी चिंताओं का
बोझ काँधे पे लिए
माँ बाउजी मुझे
अपना ध्यान रखने के लिए
कह रहे थे
कोई दुःख चिंता
उन्होंने मुझसे आज भी नहीं बांटी,
धन्य है मेरे माँ बाउजी,
जो निर्णय
मैं पूरी रात
पुरे दिन में न ले सका
वो निर्णय मैंने अपनी
विदाई के समय एक पल
में ले लिया
कि मैं पहले अपने माँ बाउजी के
सभी सपनो को पूर्ण करूँगा,
*******राघव विवेक पंडित
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