Friday 24 August 2012


नाराज हो गया

आज चाँद,

मैंने तो बड़ी मुहब्बत से

देखने का किया था

गुनाह,

चाँद की ख़ूबसूरती देख

मैंने तो रोज़ देखने की

कसम भी ली थी,

कुछ कसीदें भी पढ़े थे उसकी

ख़ूबसूरती पर,

एक बहुत

खूबसूरत सिलसिला

चल निकला था

हर रात तारों के साथ

नए रंग में

इन्द्रधनुष सा मनमोहक

खो जाता था

मैं देखते देखते.....

चाँद के रोज़ नए रूप को,



हाँ मैंने कभी उसे पाने की

इच्छा प्रबल नहीं होने दी,

कहाँ चाँद

आसमान का राजा,

कहाँ मैं

जमीं का

एक कतरा

अगर आसमान

से देखो

तो नज़र भी न आऊं,



बहुत पूछने पर

बताया चाँद ने,

किसी ने बुरी

नज़र से

उसे देखा आज,

कुछ खूबसूरती के

दीवाने

दिल बेकाबू न कर सके,

और बह गए

भावनाओं में,

और चाँद को देखकर

पढ़ दिए कुछ

ऐसे कसीदें

जो सच थे लेकिन

नागवार गुजरे चाँद को,



लेकिन दिल कहाँ

मानता है हमारी,

हम चाह कर भी

दिल को न समझा सके,

आज भी

ये चाँद का दीदार करने से

कहाँ बाज़ आता है

लेकिन अब उसे

ये छुप छुपकर निहारता है,





*******राघव विवेक पंडित

No comments:

Post a Comment