Friday 24 August 2012


आज फिर दस्तक दी है
मेरे दिल के
दरवाजे पर
एक खुबसूरत
मासूम सी ख़ुशी ने,


न जाने क्यों
मैं डर रहा हूँ उसे छूने से,
कहीं मेरे
छूने मात्र से
गायब न हो जाए,
कहीं बदल न दे 
अपना इरादा
मेरे घर आने का,


मैं परेशान हूँ
क्या करूँ....क्या न करूँ 
कैसे रोकूँ 
काश ख़ुशी के 
पाँव होते
मैं पाँव में गिरकर
मिन्नत कर लेता.....
मांग लेता माफ़ी 
अपने उन गुनाहों के लिए भी 
जो मैंने नहीं किये,


कैसे कहूँ
मुझे तो आदत हो गई है
दर्दों गम में जीने की
मुझे अपने लिए नहीं चाहिए
तेरा आगमन,



मैं अपने उन 
मासूम बच्चों के लिए
चाहता हूँ
जो ठीक से 
बोल भी नहीं पाते
जो नहीं जानते गम का
ग भी,
जो अनजान है
इस दुनिया की
जहरीले हवाओं से,


ऐ ख़ुशी आ जा
रहम कर
उन मासूम बच्चों पर,
उन बुजर्गों पर
जिन्होंने नहीं ली कभी
सकून की एक सांस भी,


ऐ ख़ुशी
मैं जानता हूँ  
नहीं है हक
तुझ पर गरीब और लाचारों का
लेकिन मात्र
एक कतरा दे देने से
न कम होगी खुशियाँ
साहूकारों की,


ऐ ख़ुशी वर्षो से बैठे है
मेरे जैसे और लोग


थककर गए है वो
टूट चुके है .....
हिम्मत जवाब दे चुकी है उनकी
अब वो भूल चुके है
तेरा नाम भी
अब मांग रहे वो सिर्फ मौत,


ऐ खुसी रहमकर .....रहमकर......रहमकर
आजा ...आजा....आजा 




*******राघव विवेक पंडित

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