हर सुबह क्यों इंतज़ार है तेरा
तेरे दीदार पर नहीं हक़ मेरा,
तू रानी है गुलिस्तान की
मेरा वीरानो में है डेरा,
मैंने तुझे देखने की गुस्ताखी की
क्या करूँ इस दिल पे नहीं बस मेरा,
तू समंदर है मुहब्बत का
क्या एक कतरे पर भी नहीं हक मेरा,
*******राघव विवेक पंडित
कल 26/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
अच्छी रचना , बधाई
ReplyDeletevery nicee one....
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteलाजवाब लिखा है ... क्या बात ...
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteखूबसूरत पंक्तियाँ
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