उम्र गुजार दी
सामान इकठ्ठा करने में
जीने का,
अब मिला है वक़्त
तो खुद को
तलाशता हूँ
मैं सामान के बीच,
मैं नासमझ
ये न समझ पाया
बीती जिन्दगी और साँसे
किसी बाजार में
नहीं मिलती,
आज वो वक़्त है
सामान है दो जन्मों का,
और मैं तड़पता हूँ
दो दिन जीने को,
*******राघव विवेक पंडित
उम्र गुजार दी
ReplyDeleteसामान इकठ्ठा करने में
जीने का,
अब मिला है वक़्त
तो खुद को
तलाशता हूँ
मैं सामान के बीच,
बहुत ही बेहतरीन पंक्तिया...
बहुत खूब...
:-)