Monday 2 July 2012

बचपन से ही 
स्वयं के सिवाय 
सबके लिए 
सोचता था वो,

माँ बाप घर द्वार
कब छूटे
उसे नहीं पता
उसे पता था सिर्फ
गाँव के लोगों की समस्या और
उनके दुःख दर्द,
गाँव के सभी लोगों के
दिल में
रहता था वो,
गाँव के बहुत से लोग
उसका नाम तक नहीं जानते थे,
गाँव के बड़े बुगुर्ग उसे
बेटा
और गाँव के बच्चे
भैया
कह बुलाते थे,

एक बार कहीं
दूर गाँव में
तूफान से
सारा गाँव बिखर गया
बर्बाद हो गए लोग
चारों ओर हा हाकर,

उसने सुना
बिना कुछ सोचे विचारे
वो आतुर हो उठा
वहां जाने को,
गाँव वालों ने
उसे बहुत मना किया
पर वो अपने निर्णय पर
अडिग रहा,
लोगों ने उसे भारी मन से
विदा किया,

किसी ने बताया
उसने वहां भी
पीड़ितों की बहुत
सेवा की,
वहां भी न जनता था
उसका कोई नाम,

वहां भी लोगों में उनका
बेटा और भैया
बन के रहा वो,
बहुत समय तक
उसकी फिर
कोई खबर न आई,

फिर एक दिन
खबर आई कि
बाढ़ के पानी में
डूबते एक बच्चे को बचाते समय
वो स्वयं भी डूब गया,

लौटा न वो
फिर कभी
वो मिटाता चला
अपने क़दमों के निशाँ
नहीं चाहता था वो
अपनी कुबानी के बदले
कुछ भी,.

लेकिन वो
छोड़ गया लोगों के
ह्रदय में एक अमिट छाप,

*******राघव विवेक पंडित

1 comment:

  1. बेहद सुंदर अभिव्यक्ति ! बधाई!

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