मेरे सपनो के सागर में
एक ही मोती है
वो हो तुम,
मेरी आँखों में
तुम इतनी
खुबसूरत
तुम्हे देख
शर्म से छुप जाए
चौदहवी का चाँद भी,
जुल्फें
इतनी घनेरी
घटाएं जो देख ले
बदल ले रास्ता,
आँखें
इतनी नशीली
जिसे एक नज़र देखो
वो होश खो दे,
तुम्हारे अधरों की
सुर्खी
फीकी कर देती है
डूबते सूरज की
लालिमा को,
तुम्हारे
होठों से गाये
गीतों के सुर,
पीछे छोड़ देते है
सुरों के हर बंधन को,
तुम्हारे हाथों के
स्पर्श को
लालायित रहता है
चमन का
हर एक गुलाब,
तुम्हारे पाँव के स्पर्श
मात्र से
आ जाती है
वीरानो में
बहार,
तुम्हारे स्पर्श
मात्र से
धमनियों में
लहू हो जाता है
बेकाबू,
तुम्हारे आलिंगन का
सुखद अहसास,
सर्वोपरि है,
संसार के सभी सुखों से,
*******राघव विवेक पंडित
उन्मुक्त कंठ से प्रशंसित इस कविता की नायिका की कोई आरज़ू ही शेष न रही होगी यदि इतना चाहने वाला नायक हो तो ...
ReplyDeleteसुन्दर कविता विवेक जी ..:)