Wednesday 21 March 2012

अहंकार

बहशी बना तो
खुद को खो दिया,
दहशत फैलाई तो
तो अकेला रह गया,
लालच में डूबा तो
आत्मसम्मान खो दिया,

आकांक्षाएं
ज्यादा प्रबल हुई तो
अच्छे बुरे की
समझ जाती रही,
खुद से ज्यादा
प्रेम किया तो
स्वार्थी हो गया,

अहंकार किया तो
पूरी जिन्दगी वर्चस्व
के लिए लड़ता रहा
न सकूँ मिला,
न प्यार मिला,
जो दौलत कमाई
उसका सुख भोगने का
समय न था,
अहंकारी बोल ने
अपने भी
पराये कर दिए,

भूख शांत की उसी रोटी से
जो तेरे दुश्मनों ने खाई
तेरे अपनों ने खाई
उस भिखारी ने भी
जिसे देखकर
तू मुह बिचकाता था,

क्या मिला सिर्फ
अपने और परायों की
घ्रणा,
नफरत,

ऐसी जिन्दगी जीने से
बेहतर है मर जाना,
माँ बाप की
इज्ज़त रह जाएगी,
बच्चे समाज में
सम्मान के साथ रहेंगे,
इंसानों की भीड़ में
दरिन्दे न होंगे,

*******राघव विवेक पंडित


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