राम की धरती पे
रावण का पहरा
कुरुक्षेत्र में
शाम और
लंका में सवेरा
युद्ध क्षेत्र सा पूरा
शहर नज़र आता है
कोई रोटी
कोई पानी
कोई सत्ता के लिए
रहा है लड़,
पाप का पेड़
दिनोंदिन रहा है बढ़,
एक इंसान
धरती पुत्र किसान
दूर कहीं बैठा
चिंतित
लेकिन शांत
चेहरे पे एक पल में सेकड़ों भाव
न किसी से लड़ाई न दुश्मनी
सिर्फ इंतज़ार
बारिश का
चिंता है तो बस
कहीं सुखा न पड़ जाये,
मैं और
मेरा शहर वाला भाई
भूखा न मर जाये,
एक मानवीय
विचारों में लीन,
एक मानवीय
विचारों से विहीन,
*******राघव विवेक पंडित
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