न जाने क्यों
तेरी कमी खलती है,
जिन्दगी के अंधेरों में
यादों की
शमां जलती है,
महसूस करता हूँ
तेरी साँसों की तपिश
अपनी साँसों में आज भी,
शाम की नर्म हवा के
परों पर आती है तेरी महक,
साथ लाती है तेरी पायल की
छम- छम छम-छम,
याद आता है
सियाह रात में
दीये की रौशनी में
तेरा चाँद सा
चेहरा देखना ,
चेहरा देखना ,
याद आता है तेरा
द्वार पर खड़े हो कर
गुनगुनाना
और हमें देख शर्माते हुए
पल्लू मुह में दबा
घर के अंदर भागना,
शाम ढलते ही
आते है यादों के समंदर
और उनके साथ
और उनके साथ
आँखों नमी,
********राघव विवेक पंडित**
खूबसूरत एहसास
ReplyDeleteनाज़ुक से एहसास और मधुर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteखुबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लगी रचना:-)