Wednesday 15 February 2012

महसूस होती है तेरी कमी


न जाने क्यों
तेरी कमी खलती है,
जिन्दगी के अंधेरों में   
यादों की 
शमां जलती है,

महसूस करता हूँ
तेरी साँसों की तपिश
अपनी साँसों में आज भी,

शाम की नर्म हवा के 
परों पर आती है तेरी महक,
साथ लाती है तेरी पायल की 
छम- छम  छम-छम,


याद आता है
सियाह रात में  
दीये की रौशनी में 
तेरा चाँद सा
चेहरा देखना ,

याद आता है तेरा 
द्वार पर खड़े हो कर 
गुनगुनाना 
और हमें देख शर्माते हुए 
पल्लू मुह में दबा
घर के अंदर भागना,

शाम ढलते ही 
आते है यादों के समंदर
और उनके साथ 
आँखों नमी, 



          ********राघव विवेक पंडित**



3 comments:

  1. नाज़ुक से एहसास और मधुर अभिव्यक्ति...

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  2. खुबसूरत अभिव्यक्ति
    बहुत सुन्दर लगी रचना:-)

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