Monday 9 January 2012

कर्ज़दार



जब मैं पैदा हुआ
तब भी कर्ज़दार था,
मेरी जन्मभूमि, मेरे देश पर
दुनिया का उधार था,
मेरी किलकारियों पर भी
माँ बाप का उधार था,
बाप साहूकार से उधार पैसा ले
डॉक्टर का बिल चूका रहा था,
बाप के साथ साथ
मुझ पर भी क़र्ज़ बढा जा रहा था,

जवान होते होते,
बाप सवर्ग सिधार गया,
कल तक जो क़र्ज़ गर्दन तक था,
वो सिर से ऊपर चला गया,

क़र्ज़ के बोझ से
जिन्दगी जर्जर हो गई
जवानी के सभी रंग बदरंग और
खुशियाँ गम में बदल गई,

माँ भी कभी कभी क़र्ज़ को
याद कर कह देती है,
तेरे पैदा होने पर क़र्ज़ लिया था
जो अब तक चला आ रहा है,
अब माँ को कैसे बताऊ,
उसी क़र्ज़ को चुकाने की चिंता में,
मैं मरा जा रहा हूँ,

मुझ जैसे किसी कर्ज़दार ने
अपनी बेटी से मेरा ब्याह कर दिया,

ब्याह के बाद
पत्नी ने माँ और माँ ने दादी
बनने की उम्मीद लगाईं,
तभी मुझे माँ की वो बात याद आई,
( तेरे पैदा होने पर क़र्ज़ लिया था
जो अब तक चला आ रहा है,)

वो भी इस दुनिया में आते ही
कर्ज़दार बन जाएगा,
क़र्ज़ चुकाने की चिंता में
घुट घुट के जीयेगा और
एक दिन
क़र्ज़ की विरासत
अपने बेटे को देगा
और मर जाएगा,

लेकिन मैंने तभी ये निश्चय किया,
में निसंतान रहूँगा
एक कर्ज़दार और न पैदा करूँगा,
मुझे ही इस क़र्ज़ नाम की
बिमारी का अंत करना होगा,
इसने मुझे जीवन भर तडपाया है,
अब इसे मेरे साथ ही मरना होगा,

*******राघव पंडित***

No comments:

Post a Comment